Saturday, May 18, 2013

चाणक्य के दर्शन में भी है समाजवाद का सिद्धांत-हिन्दी लेख (chankya ke darshan mein bhee samajwan ka siddhant-hindi lekh)

          हमारे देश में भारतीय अध्यात्म से प्रथक अनेक विदेशी विचारधाराओं ने लोगों के मनमस्तिष्क में घर कर लिया है। माना जाता है कि भारतीय अध्यात्म का दर्शन केवल बघारने के लिये है और उसके सिद्धांतों का अब कोई व्यवाहारिक महत्व नहीं है।  अनेक बुद्धिमानों ने  योजनाबद्ध ढंग से  साम्यवादी, प्रगतिवादी तथा समाजवादी विचाराधाराओं को  क्रम से यह कहकर स्थापित करने का प्रयास किया है कि उनके अनुसार गरीबों और असहायों को मदद मिलनी चाहिये।  जब यह बुद्धिमान इन विदेशी विचाराधाराओं का गुणगान करते हैं तो उनका संबोधन समाज नहीं वरन् राज्य व्यवस्था की तरफ होता है। उनका मानना है कि मनुष्य समाज तो एक दम संवदेनहीन होता और उसे राज्य के दंड से ही नियंत्रित किया जा सकता है।
           इसके विपरीत भारतीय अध्यात्म दर्शन समाज को संबोधित करता है। उसका मानना है कि अगर समाज स्वतः नियंत्रित होगा ता अधिक शक्तिशाली होगा। यही कारण है कि भारतीय अध्यात्म दर्शन ने ही हमेशा दान की प्रवृत्ति का संदेश दिया हैं। हमारे देश के बुद्धिमान लोग उसका आशय केवल मुफ्त में किसी गरीब को देना मानते हैं। इतना ही नहीं  यह समाज के धनी लोगों के विवेक पर ही निर्भर है जबकि हमारे बुद्धिमान मानते हैं कि जिसके पास राज्य दंड नहं है वह संवेदनशील हो ही नहीं सकता।  दरअसल इस दान की महिमा के लिये पुण्य का लाभ मिलने की बात अवश्य हमारा दर्शन कहता है पर उसका कोई रूप स्पष्ट नहीं किया है।  यह पुण्य केवल  अगले जन्म या इस जन्म में प्रत्यक्ष मिलता हो ऐसा दावा हमारा दर्शन नहीं करता।  इस दान की प्रवृत्ति को उकसाने के पीछे हमारे विद्वान मनीषियों का आशय यही रहा है कि इससे समाज में समरसता और शंाति रहे। जिनके पास धन है वह अपने से कमतर व्यक्ति को उसकी सेवा या वस्तु प्रतिफल या दान में देते रहें ताकि वह कभी भूखे न रहें। अगर वह भूखे या निराश होंगे तो समाज को कहीं न कहीं उनके विद्रोह का सामना करना पड़ता है। इससे अशांति फैलती है। अगर धनी मनुष्य अपने समाज के गरीब लोगों का ख्याल रखता है तो उसके धन देने की प्रक्रिया को भले ही दान कहें पर इससे जो शांति बनी रहती है वह उसके लिये पुण्य के रूप  में प्रतिफल ही होता है।
चाणक्य नीति में कहा गया है कि
-----------------------  
उपार्जितानां वित्तानां त्याग एव हि रक्षणाम्।
लडागोदसंस्थानां परीवाह इवाऽम्भासाम्।।
       हिन्दी में भावार्थ-अर्जित धन का त्याग करने से ही उसकी रक्षा हो सकती है। जैसे तालाब में जमा जल को बाहर निकालने पर उसकी रक्षा होती है।
      चाणक्य महाराज के इस संदेश का विस्तार से अर्थ समझें तो यह स्पष्ट है कि जिन लोगों को पास अधिक धन है वह इस गुमान में कतई नहीं रहें कि वह उसका केवल संग्रह कर अपनी तथा परिवार की रक्षा कर सकते हैं।  उनको अपने आसपास रह रहे लोगों को खुश रखने के लिये भी कुछ व्यय करते रहना चाहिये।  ताकि वह निराशा और हताशा से उनकी तरफ वक्र दृष्टि न डालें।  इतना ही नहीं जब वह धनिकों पर निर्भर रहेंगे तो उनकी रक्षा के लिये भी तैयार रहेंगे।  अगर धनी ऐसा नहीं करेंगे तो निश्चित रूप से न उनका धन और नही परिवार सुरक्षित रह सकता है। एक तरह से यह चाणक्य का समाजवादी सिद्धांत है जिसके लिये अधिक लिखने की आवश्यकता नहीं है।
दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 



समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढ़ें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका


इस लेखक की लोकप्रिय पत्रिकायें

आप इस ब्लॉग की कापी नहीं कर सकते

Text selection Lock by Hindi Blog Tips

हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

विशिष्ट पत्रिकायें

Blog Archive

stat counter

Labels