Tuesday, April 1, 2014

संत कबीर दर्शन-गाली का उत्तर में मौन धारण करें(sant kabir darshan-gali ka uttar mein maun dharan karen)



      हमारे देश में समाज ने  शिक्षा, रहन सहन, तथा चल चलन में पाश्चात्य शैली अपनायी है पर वार्तालाप की शैली वही पुरानी रही है। उस दिन हमने देखा चार शिक्षित युवा कुछ अंग्रेजी और कुछ हिन्दी में बात कर रहे थे।  बीच बीच में अनावश्यक रूप से गालियां भी उपयोग कर वह यह साबित करने का प्रयास भी कर रहे थे कि उनकी बात दमदार है। हमने  देखे और सुने के आधार पर यही  समझा कि वहां वार्तालाप में अनुपस्थित किसी अन्य मित्र के लिये वह गालियां देकर उसकी निंदा कर रहे हैं।  उनके हाथ में मोबाइल भी थे जिस पर बातचीत करते हुए  वह गालियों का धड़ल्ले से उपयोग कर रहे थे। कभी कभी तो वह अपना वार्तालाप पूरी तरह अंग्रेजी में करते थे पर उसमें भी वही हिन्दी में गालियां देते जा रहे थे।  हमें यह जानकर हैरानी हुई कि अंग्रेजी और हिन्दी से मिश्रित बनी इस तोतली भाषा में गालियां इस तरह उपयोग हो रही थी जैसे कि यह सब वार्तालाप शैली का कोई नया रूप हो।
संत  कबीर कहते हैं कि

----------------

गारी ही से ऊपजे कष्ट और मीच।

हारि चले सो सन्त है, लागि मरै सो नीच।।

      सामान्य हिन्दी में भावार्थ-गाली से कलह, कष्ट और झंगडे होते हैं। गाली देने पर जो उत्तेजित न हो वही संत है और जो पलट कर प्रहार करता है वह नीच ही कहा जा सकता है।

आवत गारी एक है, उलटत होय अनेक।

कहें कबीर नहि उलटियो, वही एक की एक।।

     सामान्य हिन्दी में भावार्थ-जब कोई गाली देता है तो वह एक ही रहती है पर जब उसे जवाब में गाली दी जाये तो वह अनेक हो जाती हैं। इसलिये गाली देने पर किसी का उत्तर न दें यही अच्छा है।
      कई बार हमने यह भी देखा है कि युवाओं के बीच केवल इस तरह की गालियों के कारण ही भारी विवाद हो जाता है। अनेक जगह हिंसक वारदातें केवल इसलिये हो जाती हैं क्योंकि उनके बीच बातचीत के दौरान गालियों का उपयोग होता है। जहां आपसी विवादों का निपटारा सामान्य वार्तालाप से हो सकता है वह गालियों का संबोधन अनेक बार दर्दनाक दृश्य उपस्थित कर देता है।
      एक महत्वपूर्ण बात यह कि अनेक बार कुछ युवा वार्तालाप में गालियों का उपयोग अनावश्यक रूप से यह सोचकर करते हैं कि उनकी बात दमदार हो जायेगी।  यह उनका भ्रम है। बल्कि इसका विपरीत परिणाम यह होता है कि जब किसी का ध्यान गाली से ध्वस्त हो तब वह बाकी बात धारण नहीं कर पाता।  यह भी एक मनोवैज्ञानिक सत्य है वार्तालाप क्रम टूटने से बातचीत का विषय अपना महत्व खो देता है और गालियों के उपयोग से यही होता है। इसलिये जहां अपनी बात प्रभावशाली रूप से कहनी हो वहां शब्दिक सौंदर्य और उसके प्रभाव का अध्ययन कर बोलना चाहिये। अच्छे वक्ता हमेशा वही कहलाते हैं जो अपनी बात निर्बाध रूप से कहते हैं तो श्रोता भी उनकी सुनते हैं। गालियों का उपयोग वार्तालाप का ने केवल सौंदर्य समाप्त करता है वरन उसे निष्प्रभावी बना देता है।

दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढ़ें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका


इस लेखक की लोकप्रिय पत्रिकायें

आप इस ब्लॉग की कापी नहीं कर सकते

Text selection Lock by Hindi Blog Tips

हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

विशिष्ट पत्रिकायें

Blog Archive

stat counter

Labels