Thursday, May 28, 2015

भारतीय अध्यात्म दर्शन में जीवमात्र के बीच भेदभाव वर्जित-हिन्दी चिंत्तन लेख(bhartiya adhyatma darshan mein jeevmatra ke beech bhedbhav varjit-hindi thought article)

अज्ञानी मनुष्यों के दूसरों के प्रति भेदभाव की प्रवृत्ति स्वभाविक रूप से रहती है जबकि ज्ञानी लोग मनुष्य और मनुष्यों के बीच की बात तो छोड़िये इस प्रकृत्ति के जीवों में ही भेद नहीं करते। हमारे अध्यात्मिक दर्शन के अनुसार जीवन की 84 लाख यौनियां होती हैं। अक्सर यह कहा भी जाता है कि जो जीव भगवान नाम का स्मरण करेगा वह 84 के चक्कर से बच जायेगा। भक्त के सच्ची पहचान भी यही बताई गयी है कि वह किसी भी जीव को हेय न समझे। सभी को सम्मान दे। यही कारण है कि भारत में वानर, सिंह, चूहे तथा सर्प को भी जनमानस में भगवतस्वरूप स्थापित किया गया है। एक सामान्य भारतीय कभी भी पशु और पक्षी तक को अपमान की दृष्टि से नहीं देखता।  यह अलग बात है कि पाश्चात्य शिक्षा के चलते हमारे देश में वहां प्रचलित भेदभाव आ गया है। लोगों की सोच अब पूरी तरह से देसी न होकर पश्चिमी हो गयी है। इसी कारण हमारे देश में भेदभाव बढ़ा है।
भारतीय अध्यात्मिक दर्शन में मूलतः जीव मात्र में ही भेदभाव की प्रेरणा नहीं दी जाती। मध्यकाल के दौर में जब भारतीय समाज पर विदेशी लोगों के हमले हुए और उस दौरान तत्कालीन समाज पर नियंत्रण के लिये उनके दलालों ने यहां पर बौद्धिक प्रकृत्ति बदलने का प्रयास किया।  उस दौरान अनेक भारतीय चिंत्तकों ने समाज को बचाने के लिये कुछ ऐसे मार्ग तलाश करने चाहे जो विदेशी तथा देसी सोच के साथ ही  लोगों के बीच भेद दिखाने वाले थे। उनके सिद्धांत अच्छे या बुरे थे यह अलग से बहस का विषय है पर चिंत्तकों की नीयत पवित्र थी यह तय है।
समय के साथ भारतीय समाज परिवर्तनशील रहा है।  वह केवल अपने दर्शन से तत्कालीन संदर्भों में बेहतर संदेश ही स्वीकार करता है। उस पर रूढ़ता का आरोप नहीं लगाया जा सकता है। विदेशी कू्रर लोगों के शासन तथा उनके बौद्धिक दलालों से संघर्ष के कारण भारतीय अध्यात्मिक विचाराधारा का प्रवाह अवरुद्ध हुआ पर इसे रूढ़ता नहीं माना जा सकता। बहरहाल हमारा यह मानना है कि मनुष्य ही नहीं वरन् जीव मात्र में ही भेद करना हमारे अध्यात्मिक के सिद्धांतों के विपरीत है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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Sunday, May 10, 2015

संकल्प में सर्वजन हिताय की कामना स्थापित करें-हिन्दी चिंत्तन लेख(sankalp mein sarwjan hitay ki kamana sthaapit karen-hindi thought article)


जिस तरह यह संसार परमात्मा के संकल्प के आधार स्थित है वैसे ही हमारे हृदय  और मस्तिष्क के संकल्प के अनुसार ही हमारा जीवन चलता है। अगर हम दूसरे के कार्य में विघ्न आने की संभावना आने पर खुश होते हैं तो यह तय मानिये कि  कि हमारे काम में विघ्न आयेंगे हालांकि तब हमारे अंदर यह विचार नहीं आता कि हमारे किस संकल्प के कारण यह हुआ?
हमें अपने अंदर स्थित समस्त इंद्रियों में पवित्रता का संकल्प स्थापित करना ही चाहिये।  ऐसा नहीं हो सकता कि हम मन में घृणा रखें और वाणी में मीठे शब्द विष की तरह उपयोग करें। हम अपने कर्ण से अच्छे स्वर सुनना चाहें पर मन के वश ऐसे स्थानों पर जायें जहां दृश्य तो अनूकूल हो पर स्वर विपरीत मिलें। वहां चक्षु और वाणी का सुख तो मिले पर कर्णों को अप्रिय स्वर घेर लें।  कहने का अभिप्राय यह है कि हमें पवित्रता, शुद्धता और सहजता के भाव को पहले अपने मूल स्थान पर स्थापित करें। इससे हमारा संकल्प सौंद्रर्य भाव में स्थित हो जायेगा तो जीवन के धारा भी उसी में प्रवाहित होगी।

समय समय  पर आत्ममंथन करें कि  कहीं हमारे अंदर किसी के प्रति विद्वेष या घृणा का भाव तो नहीं आ रहा? हम दूसरों के अनिष्ट पर प्रसन्न तो नहीं हो रहे? हम दूसरो के गुणों की बजाय उसमें दोषों पर तो ध्यान नहीं दे रहे?
नकारात्मक विचारों से हमें दूर रहने का अभ्यास इस तरह करना चाहिये कि कभी किसी के लिये विद्वेष, घृणा या निंदा का भाव नहीं आये। हमें दूसरों की उन्नति, उत्थान और सुख की कल्पना करना चाहिये। हम अकेले इस संसार का भाग नहीं होते। इतना ही नहीं हम जिन सुविधाओं का उपयोग करते हैं वह भी समूह में मिलती हैं। सूर्य की उष्मा, चंद्रमा की शीतलता और बादलों का अमृत सभी के लिये बरसता है। हम किसी दूसरे के खेत पर अकाल या बाढ़ की कामना नहीं कर सकते क्योंकि प्रकृति ने हमें समूह में बांधा है।  हम पड़ौसी के घर पर संकट की कामना नहीं कर सकते क्योंकि वह हमसे भी जुड़ा है। इसलिये हमें सर्वजन हिताय संकल्प रखन चाहिये। यही जीवन का अंतिम सत्य है। इसे हम तत्वज्ञान भी कह सकते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
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