स्वयं भटके वही पथप्रदर्शक बन जाते, मसखरी में ज्ञान देते गुरु तन जाते।
‘दीपकबापू’ गुरुकुल बनाये पंचसितारा, धवल चेहरा रखकर काला धन पाते।।
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कभी हसीन पल साथ लाती जिंदगी, कभी डरा भी देती यही जिंदगी।
धोखे भरोसे का सौदा रहेगा जारी, ‘दीपकबापू’ चलचित्र माने जिंदगी।।
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दिल की बात जुबान पर नहीं लाते, धवल छवि काली नीयत में नहलाते।
‘दीपकबापू’ शब्द के सौदागर ठहरे, अनर्थ के अपने ही रंग से बहलाते।।
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बाह्य आक्रमण का भय रहता है, चोट दे अंदर वाला इतिहास कहता है।
‘दीपकबापू’ सामने खंजर झेल लेते, पीछे के साथी का वार कौन सहता है।।
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भजन आमंत्रण में चार लोग नहीं आते, व्यसन के मेले सभी को भाते।
‘दीपकबापू मन के खेल में ऐसे फंसे, बदन में स्वाद के लिये विष लाते।।
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माया के मद में अर्थहीन शब्द कहें, भ्रम में फंसे बुद्धिमान अहंकार में बहें।
‘दीपकबापू’ ऊंचे लोगों से बचे रहें, बोल अनुसना करें तो मौन भी न सहें।।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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