Saturday, July 4, 2015

विश्व महागुरु बनने के लिये विज्ञान में आत्मनिर्भरता जरूरी-हिन्दी चिंत्तन लेख(vishwa guru ke liye vigyan atmanirbharta jaroori-hindi thought article)


      हमारा मानना है कि भारत में अगर अंतर्जाल पर गूगल जैसा सक्षम स्वदेशी मस्तिष्क यानि सर्वर बन जाये तो विश्व पटल पर हमारा देश महागुरु बन जायेगा। कुछ उत्साही लोग अपने देश भाारत को विश्व गुरु दोबारा बनाना चाहते है-उनकी बातों ये तो यह लगता है कि  वह मानते हैं कि यह पदवी अब हमारे पास नहीं है-इसलिये तमाम तरह के अभियान चलाते हैं।  हमारे श्रेष्ठ ग्रंथ श्रीमद्भागवत गीता में ज्ञान के साथ विज्ञान को भी महत्व दिया गया है। उसके संदेश के अनुसार तो  तत्वज्ञान में स्थित होकर कर्म से वैराग्य लेने की जाय उसमें तत्पर होकर विज्ञान के साथ जीवन पथ पर विकास करना ही चाहिये।
                              अनेक लोगों को यह भ्रम है कि भारत के तीस चालीस पूंजीपतियों की संपत्ति गुणात्मक रूप से बढ़ने पर से देश विश्व की आर्थिक शक्ति बन जायेगा।  इनमें से भी तीन चार ने अगर विश्व बाज़ार पर कब्जा कर लिया तो भारत ही महाशक्ति कहलायेगा।  उसी तरह कुछ लोगों में यह अंधविश्वास भी है कि दस पांच कथित पेशेवर गुरु विदेशों में जाकर वहां की धार्मिक विचाराधाराऐं मानने वालों में अपने ज्ञान का वाचन करेंगे तो  अभी भी विश्व गुरु कहा जायेगा।  अन्य देशों में जहां वर्तमान में सर्वशक्तिमान के भारतीय स्वरूपों की दरबार  नहीं है वहां बन जाने पर शंख की ध्वनि तथा आरती के स्वर बजने से भारत के ज्ञान की पताका फहरायगी-ऐसे विचार करने का कोई मतलब नहीं।  हमारा मानना है कि किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा तब बढ़ती है उसके पास इतना धन हो जाये जब वह उदारता से दान कर सके।  समाज की प्रतिष्ठा तब बढ़ती है जो न स्वयं आत्मनिर्भर हो वरन् दूसरे समुदाय की भी सहायता करे।  राष्ट्र की प्रतिष्ठा तब बढ़ती है जब ज्ञान, विज्ञान और धन की दृष्टि भरपूर होने के साथ ही दूसरे राष्ट्रों की भी सहायता करे।  हमारे देश में अंतर्जाल पर इतनी निर्भरता बढ़  गयी है पर फिर भी हमारे पास अपना स्वदेशी सर्वर नहीं है।
                              हम अभी भी सामान्य जनजीवन के लिये विदेशों पर आश्रित हैं।  अगर विदेशी कंपनियां किसी दिन बंद हुईं या उनके प्रबंधकों की नाराजगी हुई तो वह अपनी सेवायें बंद कर या बाधिक कर यहां अव्यवस्था फैला सकती हैं।  भारी भरकम पूंजी स्वामी और उच्च तकनीकी विशारद होते हुए भी हम प्रबंध कौशल के अभाव में आगे नहीं बढ़ पाये। हमारे तकनीशियन विदेशों में जाकर नाम कमा रहे हैं क्योंकि उनके लिये यहां  विकास के अवसर नहीं बन पाते।  हमें अपनी आंतरिक समस्याओं से निजात पानी होगी तब विश्व में अपना खोया सम्मान पा सकेंगे।
                              अभी 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया। यह हमारे योग साधना ज्ञान की श्रेष्ठता का प्रमाण है पर विज्ञान में श्रेष्ठता के अभाव में हमारा देश अभी बहुत पीछे है। यही कारण है कि हमारे देश के कुछ कुंठित विद्वान विदेशी विचाराधाराओं के वैज्ञानिक होने का दावा करते हैं।  ज्ञान की दृष्टि से भारत हमेशा ही विश्व गुरु रहा है अब तो महागुरु की पदवी धारण करने का समय है।  यह तभी संभव है जब हम आधुनिक तकनीकी के आधार पर न केवल स्वयं आत्मनिर्भर होंगे वरन् दूसरों के सहायक भी बनेंगें।  इसलिये अंतर्जालीय स्वदेशी मस्तिष्क का निर्माण होने के लिये तत्परता से प्रयास किये जाने चाहिये।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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