Saturday, June 27, 2015

स्वर्ग प्राप्ति का मोह अज्ञान का प्रमाण-भर्तृहरि नीति शतक के आधार पर चिंत्तन लेख(swarga prapti ka moh agyan ka praman-A Hindu hindi religion thought based on bhartrihari neeti shatak)

                              भगवान श्रीकृष्ण से श्रीमद्भागवत गीता में वेद वाक्यों में स्वर्ग दिलाने वाले वाक्यों से प्रीति रखने वाले लोगों को अज्ञानी बताया है। हमारे यहां से धार्मिक सत्संग तथा अन्य सामूहिक कार्यक्रमों की परंपरा रही है जिसमें अनेक पेशेवर विद्वान लोगों को स्वर्ग का मोह दिखाते हैं।  उन्हें कथित रूप से स्वर्ग प्राप्ति के लिये काम, क्रोध, लोभ, मोह तथा अहंकार से मुक्त होकर कार्य करने के लिये प्रेरणा देते हैं। ऐसे कथित विद्वान स्वयं सारी जिंदगी संपति, शिष्य तथा प्रतिष्ठा अर्जित करने में बिताते हैं पर दूसरों को भ्रम में डालते हैं।
भर्तृहरि नीति शतक में कहा गया है कि
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स्वपरप्रतारकोऽसौ निन्दति योऽलीपण्डितो युवतीः।
यस्मामात्तपसोऽपि फलं स्वर्गस्तस्यापि फलं तथाप्सरसः।।
                              हिन्दी में भावार्थ-शास्त्रों के ज्ञान का अधकचरा ज्ञान रखने वाले अनेक कथित विद्वान अपने तथा पराये सभी को धोखा देते हैं क्योंकि वह जिस तप की बात करते हैं वह स्वर्ग की प्राप्ति के लिये होता है जहां अप्सरायें और भोग विलास की प्रधानता है।
                              हमारे अध्यात्मिक दर्शन के अनुसार हर मनुष्य अपने कर्म का फल स्वयं ही भोगता है। वह अपने संकल्प के अनुसार ही अपने जीवन में स्वर्ग और नरक का वातावरण बनाता है। यह संभव नहीं है कि  मनुष्य का कर्म दूसरा भोगे।  मनुष्य स्वयं ही अपने को संकट में डालता है या उद्धार करता है।  कितना भी सत्संग, भजन और शास्त्र पढ़ ले जब तक उसके कर्म, विचार और बुद्धि शुद्धि नहीं होगी तब तक कष्ट ही भेागेगा।  योग साधना से अपनी देह, मन और विचारों को शुद्ध रखने वाले इस संसार में स्वर्ग न भोगें पर कम से कम नारकीय स्थिति से दूर रहते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
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Saturday, June 20, 2015

योग साधना से दृष्टिकोण बदलता है-विश्व योग दिवस 21 जून पर विशेष संपादकीय लेख(yoga sadhana se drishtikon badalata hai-A Hindu hindi thoughta article on world yoga day, internation yoga day21 june 2015)

                                                        ’‘योग हमारे जीवन की स्थितियां नहीं बदलता पर उन्हें देखने को दृष्टिकोण बदलता है।’’योगाचार्य आंयगार की एक शिष्या ने अपने गुरु का संदेश सुनाते हुए कहा।  टीवी पर उनका यह विचार देखकर खुशी हुई।  इसे सुनकर एक विचार हमारे मन में आया कि योग से जुड़े लोगों का चिंत्तन एक ही दिशा में इसलिये होता है क्योंकि उनके कदम एक ही धरातल पर होते हैं।  योग साधक सहज होते हैं इसलिये उनका चिंत्तन सीमित दायरे में होने के बावजूद व्यापक दृष्टिकोण वाला होता है जबकि सामान्य मनुष्य अनेक धरातलों पर कदम रखते हुए असीमित दायरों में सोचते हैं इसके बावजूद उनका दृष्टिकोण संकुचित हो जाता है।
                              योग से साधक के चिंत्तन को वायु जैसी गति, अग्नि जैसी शक्ति और जल जैसी निर्मल भक्ति प्राप्त होती है और वह जीवन में वैचारिक रूप से स्वतंत्र होकर आकाश में विचरते हुए  विषयों में प्रवेश करता है जबकि सामान्य मनुष्य विषयों की बोतल में सदैव बंद रहता है-एक तरह से कूंऐं का मेंढक हो जाता है।  लगातार योग तथा ज्ञान साधना करते हुए इस लेखक ने भी यह निष्कर्ष निकाला कि योग साधना से कोई सिद्ध नहीं बनता वरन् साधक का दृष्टिकोण सबसे अलग और सटीक हो जाता है इसलिये वह सिद्ध दिखता है।  एक योग साधक की हमेशा ही सत्संग चर्चा में रहती है। दूसरों के विचार सुनने पर यह पता लगता है कि हम अकेले ऐसा सोचने वाले नहीं है। साथ ही यह भ्रम भी दूर होता है कि हमने ही ऐसा सोचा था।
21 जून को विश्व योग दिवस पर टीवी पर अनेक ऐसे कार्यक्रम देखने को मिले जो रुचिकर थे। कुछ चैनल तो इस योग दिवस में भारत से बाहर उत्पन्न वैचारिक धाराओं के विद्वानों को इसके विरोध में लाकर अपने कार्यक्रमों में निष्पक्षता का रस विष की तरह घोलते रहे-यह अलग बात है कि दृढ़ संकल्पित योग साधकों में विष पचाने की क्षमता होती है- पर कुछ ने वाकई ऐसे कार्यक्रम प्रसारित किये जिससे लगा कि योग साधना का वैश्वीकरण तो बहुत पहले ही चुका है जबकि अब जाकर उसे स्वीकार किया गया है। अनेक विदेशी योग शिक्षकों को योग कराते देखकर अच्छा लगा।  योग के अनेक नाम सुनने को मिले-जैसे नृत्य और मुक्केबाजी योग आदि। योग के प्रति अंग्रेज तथा अमेरिकन लोगों की निष्ठा ने हृदय को इतना प्रभावित किया कि लगने लगा कि हम भारतीय योग की नहीं वरन् विश्व योग की बात कर रहे हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
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Wednesday, June 3, 2015

सर्वशक्तिमान पर निरर्थक बहस-हिन्दी चिंत्तन लेख(discussion on God(men or women-A hindu hindi thought article)


    प्रचार माध्यमों के अनुसार ब्रिटेन में इस बात पर बहस छिड़ी है कि गॉड स्त्री है या पुरुष! हमारे हिसाब से उन्हें इस बात पर बहस करना ही नहीं चाहिये क्योंकि अंग्रेजी में स्त्री या पुरुष की क्रिया के वाचन शब्द का कोई विभाजन ही नहीं है। स्त्री कार्य कर रही है(Women is working) या पुरुष कार्य कर रहा है(Men is working) इसमें अंग्रेजी वर्किंग शब्द ही उपयोग होता है। यही कारण है कि अनेक कट्टर हिन्दी समर्थक अपनी भाषा को वैज्ञानिक और अंग्रेजी को भ्रामक मानते हैं। यह बहस देखकर उनके तर्क स्वाभाविक लगते हैं|
   सर्वशक्तिमान की स्थिति पर भारतीय दर्शन स्पष्ट है। हमारे यहां परब्रह्म शब्द  सर्वशक्तिमान के लिये ही उपयोग  किया जायेगा।  मुख्य बात यह कि वह अनंत माना जाता है-यह स्पष्ट किया गया है कि वह चित में धारण किया जा सकता है पर वह रूप, रस, गंध, स्वर और स्पर्श के गुणों से नहीं जाना जा सकता। वह चिंत्तन से परे है पर मनुष्य अपने चित्त में जिस गुण से उसका स्मरण करेगा वही उसका ब्रह्म है।
         हमारे यहां विदेशी विचाराधारा के प्रवर्तक सब का सर्वशक्तिमान एक है का नारा लगाते हुए यहां भ्रम पैदा करते हैं। सद्भाव के नाम पर यही नारा लगाते हैं पर सच यह है कि वह एक है कि अनेक, यह कहना या मानना संभव नहीं। अनेक विद्वान तो यह भी कहते हैं कि वह है भी कि नहीं इस पर भी कुछ नहीं कहा जा सकता क्योंकि वह अनंत है। इसलिये उस पर बहस करना ही नहीं चाहिये। वह वैसा ही है जैसा भक्त है। भक्त जिस रूप में चाहता है उसे धारण कर ले। हमारे यहां अनेक साकार स्वरूप माने जाते हैं। भक्ति को जीवन का अभिन्न भाग माना जाता है। यही कारण है कि निराकार परब्रह्म की कल्पना में असहजता अनुभव करने वाले साकार रूप में उसे स्थापित करते हैं पर उनमें यह ज्ञान रहता ही है कि वह अनंत है। अपने अपने स्वरूपों को लेकर बहस कहीं नहीं होती। यह तत्वज्ञान हर भारतीय विचारधारा में स्थापित है  इसलिये यहां ऐसी निरर्थक तथा भ्रामक चर्चा कभी नहीं होती।
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