Saturday, March 26, 2011

अपने काम के मंत्र दिल में ही रखें-हिन्दू धार्मिक विचार (apna mantra dil mein hakehn-hindu dharmik vichar)

राजा राज्य का और गृहस्थ परिवार का मुखिया होता है। राज्य और परिवार के मुखिया के पास अपने प्रभाव के अंतर्गत रहने वाले सदस्यों के अनेक रहस्य होते हैं। उसी तरह राजकाज और परिवार चलाने के वैसे ही मंत्र या तरीके होते हैं जिस तरह अध्यात्म अनुष्ठानों के होते हैं। राज्य प्रमुख और परिवार के मुखिया को अपने राजकाज का मंत्र तथा रहस्य अपने मन में रखना चाहिए। अगर वह अपने मंत्र बाहर बता देगा तो वह उनका सार्वजनिकीकरण हो जाने पर संकट खड़ा हो सकता है।
इस विषय पर कौटिल्य महाराज कहते हैं कि
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संरक्षेन्मंत्रबीजं हि तद्वीजं हि महीभुजाम।
यस्मिन्न पिन्ने ध्रुवं भेदो गुप्ते युप्तिनुतरा।।
‘मंत्र के रहस्य की रक्षा करना चाहिए। राजा का यही बीज है जिसके प्रगट होने से भेद खुल जाता है और उसके सारे प्रयास निष्प्रभावी हो जाते हैं। गुप्त रहस्य की रक्षा करने की नीति अपनानी चाहिऐ।’
हमने देखा है कि कुछ लोग अतिउत्साह या दूसरे पर विश्वास करने के कारण अपने कामकाज का मंत्र बता देते हैं। उनको लगता है कि जैसे वह कोई बहादुरी का काम रहे हैं। उनको यह भी अहंकार होता है कि इस तरह वह अपनी बुद्धिमानी प्रमाणित कर रहे हैं। कुछ समय बाद जब उनकी कहंी पोल खुल जाती है तो न वह स्वयं ही हंसी के पात्र बनते हैं बल्कि अपमानित भी अनुभव करते हैं। अपने कामकाज के मंत्र दूसरे को बताना आदमी के हल्केपन का प्रमाण है। ऐसे लोगों की संगत करना दूसरे के लिये भी असहजता का कारण बनती । कोई भी मनुष्य तभी तक ताकतवर रहता है जब तक वह अपने कामकाज जिनको गुरुमंत्र दूसरे से छिपाये रहता है।
कोई व्यक्ति कितना मानसिक रूप से दृढ़ है इसका अनुमान तभी लग सकता है जब वह अपने राज अपने मन में ही रखने का प्रमाण देता है। कहा जाता है कि जब तक कोई बात हमारे मन में है तभी तक वह रहस्य है, अगर वह दूसरे को बताई तो इसका मतलब यह है कि वह अब तीसरे कान तक जायेगी। तीसरे से फिर चौथे तक पहुंचेगी और अंततः ऐसी बात सब जान जायेंगे जो संबद्ध व्यक्ति को केवल अपने पास रखनी थी। अंततः उसे अपने काम में परेशानी आनी ही है।
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संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com


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