Wednesday, April 8, 2009

चाणक्य नीतिः भंवरे को कमलिनी के रस का महत्व विदेश में पता चलता है

अलिरय नलिनीदलमध्यगः मलिनीमकरंदमदालसः।
विधिवशात्परदेशमुपागतः कुटजपुष्परसं बहु मन्यते।।


हिन्दी में भावार्थ-भंवरा जब तक कमलिनी के बीचों बीच रहकर उसके रस का सेवन करता तब उसके नशे में आलस्य उसे घेरे रहता है मगर जब समय और भाग्यवश परदेस में जाना पड़ता है तब कुटज के फूल के रस को भी बहुत महत्वपूर्ण मानता है जिसमेें किसी प्रकार की गंध नहीं होती।

वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या- जिन लोगों का जन्म ही सुविधा संपन्न परिवारों में होता है वह अभावों का अर्थ नहीं जानते। तब वह लोग अपनी सुविधाओं के बारे में यह सोचते हैं कि यह तो उनको जन्मजात विरासत में मिली है। इसके अलावा अपने लिये उपलब्ध धन तथा भौतिक उपलब्ध साधनों का महत्व नहीं समझते। ऐसे में जब किसी कारण वश जब उनको उन सुविधाओं से वंचित हो पड़ता है तब पता लगता है कि वास्तव में उनका क्या मोल है?
इस संदेश में भारत में उपलब्ध जल संपदा का उदाहरण ले सकते हैं। विश्व के अनेक वैज्ञानिकों के अनुसार भारत में भू जल स्तर किसी भी अन्य देश से अधिक है। प्रकृत्ति की इस कृपा का महत्व हम कम वर्षा काल में भी नहीं कर पाते क्योंकि भूजल स्तर इतना तो उपलब्ध हो ही जाता है कि हमारा काम चल जाये। जिन देशों में यह उपलब्ध नहीं है वहां एक वर्ष की अल्प वर्षा में ही अकाल का महान प्रकोप उपस्थित हो जाता है। भारत में वह लोग जो पानी का अपव्यय करते हैं और उनका विदेश में-खासतौर से मध्य एशिया में-प्रवास होता है तब उनको वहां पता लगता है कि पानी कितना महत्वपूर्ण है। इतना ही नहीं भारत के ही कुछ रेगिस्तानी भागों में जाने पर भी उनको पता लगता है कि पानी का कितना महत्त है? कहने का तात्पर्य यह है कि जो वस्तु उपलब्ध है उसका महत्व तब पता लगता है जब वह हाथ से निकल जाती है।
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