कहा जाता है कि ‘करत करत अभ्यास से मूरख भये सुजान।’ हमारे भारतीय अध्यात्मिक दर्शन में अनेक ग्रंथ हैं। इन ग्रंथों नियमित अध्ययन से ही हृदय में भक्ति तथा ज्ञानार्जन के प्रति रुचि पैदा होती है। श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा भी है कि श्रद्धा व भक्ति से उसका अध्ययन करने वाला केवल संसार में आनंद भोगता है वरन् पापों से भी मुक्त हो जाता है।
पतञ्जलि योग दर्शन में कहा गया है कि---------‘स्वाध्यायादिष्टदेवतासम्प्रयोगः।’हिन्दी में भावार्थ-स्वाध्याय से इष्टदेवता की प्राप्ति हो जाती है ।’
व्याख्या-हमारे देश में गुरुशिष्य पंरपरा का बहुत प्रचार होता है। पेशेवर धार्मिक लोग गुरु बनकर अपने लिये अधिक से अधिक शिष्य संग्रह करना चाहते हैं। उनके राजसी कर्मों से अनेक धर्मभीरु लोग भ्रमित हो जाते हैं तब उन्हें लगता है इस संसार में योग्य गुरु मिलना कठिन है। योग सूत्र के अनुसार स्वाध्याय से भी अपने इष्ट का स्मरण कर जीवन सार्थक किया जा सकता है।
श्रीमद्भागवत गीता में भी भगवान श्रीकृष्ण ने स्पष्ट किया है कि उनके स्मरण मात्र से ही साधक योगपद पर प्रतिष्ठत हो सकता है। इतना ही नहीं उन्होंने गीता के अध्ययन से भी सीखने की प्रेरणा दी है। अतः योग्य या वांछित गुरु न मिले तो स्वध्याय से अपने अंतर्मन में शुद्धि लाने का प्रयास करना भी ठीक है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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