Saturday, November 21, 2009

मनुस्मृति-चांदी दान करने से सौम्य रूप प्राप्त होता है (chandi ka dan aur sundarta- manu smriti)

वारिदस्तृप्तिमाष्नोति सुखमक्षयमन्वदः।
तिलप्रदः प्रजामिष्टां दीपश्चक्षरुत्तमम्।।
भूमिदो भूमिमाश्नोति दीर्घमायुर्हिरण्यदः।
गृहदोऽयाणि वेश्मानि रूपमृत्तमम्।।
हिन्दी में भावार्थ-
प्यासे को जल प्रदान करने वाले बहुत तृप्ति मिलती है। अन्न देने वालो को स्थिर सुख, तिल का दान करने वाले को प्रिय संतान, दीपक का दान को उत्तम दृष्टि,भूमि का दान करने वालो को धरती, सोने का दान करने वाले दीर्घायु, मकान का दान करने वाले को सुंदर महल एवं चांदी दान करने वालो को सौम्य और सुंदर रूप की प्राप्ति होती है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-हमारे अध्यात्मिक दर्शन के अनुसार दान की महिमा अपरंपार है। इसके दैहिक तथा मानसिक लाभ दोनों ही होते हैं। मुख्य बात यह है कि हम अगर मनुष्य हैं तो अपने परिवार और मित्रों के लिये काम करते हुए यह समझते हैं कि हम अच्छा काम रहे हैं जबकि यह तो केवल हम अपने स्वार्थ की वजह से करते हैं। इतना ही नहीं हम किसी से कुछ पाने की इच्छा करते हुए भी उसका काम करते हैं। यह स्वार्थपूर्ण जीवन व्यतीत करना सभी को अच्छा लगता है पर मन में शांति किसी को नहीं मिलती। वैसे हमारे यहां सारे संदेश धर्म के आधार पर इसलिये ही दिये गये हैं क्योंकि यहां आदमी बहुत धर्मभीरु है पर इन संदेशों का मुख्य उद्देश्य समाज में समरसता का भाव पैदा करना है।
दान करने से स्वर्ग मिलता है या नहीं यह बहस का विषय हो सकता है परंतु धनी लोगों द्वारा गरीबों को कुछ देने से उनका कोई खजाना खत्म नहीं होता बल्कि गरीबों को उनके प्रति सौहार्द बढ़ता है। समाज में रहने के लिये लोगों के सौहार्द भाव की जरूरत सभी को होती है-चाहे वह गरीब हो या अमीर। जैसे जैसे अमीर लोग इससे विमुख हुए हैं उनके लिये ही असुरक्षा का वातावरण बना है। सुरक्षा के लिये पहरेदार उन्होंने ही लगाये हैं। बंदूकों के लायसेंस उन्होंने लिये हैं। वजह यह है कि अपना धन और अपने प्राण बचाने के लिये उनको चिंता रहती है। यह जीवन के प्रति आत्मविश्वास की कमी इसलिये ही है क्योंकि वह जानते हैं कि समाज का एक वर्ग उनसे नाखुश है। यह नाखुशी कभी कभी अपराधी के रूप में भी प्रकट होती है। इसका मुख्य कारण यह है कि पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव में समाज हित का काम राज्य के भरोसे छोड़ दिया गया है। दान और कल्याण के कार्यक्रम संस्थागत रूप पा गये हैं जिनसे पनपा है केवल भ्रष्टाचार। एक व्यक्ति के रूप में दान और कल्याण का काम बहुत कम लोग करते हैं।

आज हम अपने देश में चारों तरफ जो अशांति का वातावरण देख रहे हैं उसका मुख्य कारण यही है कि धनी लोगों के संचय की प्रवृत्ति तो है पर दान की नहीं। गरीब तो चाहे जैसे जी लेता है पर अमीरों की नींद केवल इसलिये ही हराम है क्योंकि वह दान और कल्याण के काम को अपना दायित्व नहीं समझते।
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://anantraj.blogspot.com
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