Tuesday, April 22, 2008

संत कबीर वाणी:ज्ञानी की प्रीती उच्च और अज्ञानी की घटिया होती है

गहरी प्रीति सुजान की, बढ़त-बढ़त बढि जाय
ओछी प्रीति अजान की, घटत घटत घटि जाय

संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते है कि सज्जन पुरुष का प्रेम में गहराई होती है और वह धीरे-धीरे बढ़ती है, परंतु अज्ञानी की प्रीति बहुत घटिया होती है वह धीरे-धीरे घटती जाती है।

प्रेम बिकांता मैं सुना, माथा साटै हाट
पुछत बिलम न कहजिये, तत छिन दीजै काट


संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि प्रेम तो अनमोल है, इसका मूल्य कौन चुका सकता है? प्रेम को बिकते तो सुना है परंतु उसके बदले अपना सिर काटकर देना पड़ता है ऐसे में देर न कीजिये अपनी शीश काटकर मोल चुका दो।

वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-आजकल समय बदल गया है। लोगों को अपने शहर और देश से परे रोजगार के लिये जाना पड़ता है। ऐसे में अनजान सथानों पर अपना काम निकालने के लिये उन्हें अन्य लोगों से संपर्क करना पड़ता है ऐसे में नये लोगों से धोखे का अंदेशा बना रहता है। ऐसे में सहृदय प्रेमी की पहचान का एक ही तरीका है जो धीरे-धीने प्रेम के रास्ते पर बढ़े और उतावली न दिखाए उसके बारे में यही समझना चाहिए कि उसका कोई स्वार्थ नहीं है। जहां कोई व्यक्ति उतावली से प्रेम संबंध बनाने की करे वहां समझना चाहिए कि उसका कोई फायदा होने वाला है और उसके पूरे होते ही वह दूर हो जायेगा।

हमने देखा होगा कि अनेक प्रकार के इस तरह के समाचार आते रहते हैं कि अमुक ने अमुक को धोखा दिया और अमुक ने अमुक के बारे में जानकारी इधर से उधर कर हानि पहुंचाई। यह सब प्रेम में ही होते है। अतः सावधानी से आगे बढ़ना चाहिए। आजकल सब लोग सच्चे मित्र या प्रेमी होने के दावा करते हैं पर हम सब जानते हैं कि सब कोरी बकवाद करते हैं। एसे में प्रेम मार्ग पर सतर्कता से बढ़ना चाहिए और कोई अपने घर-परिवार का आदमी बाहर के किसी व्यक्ति से प्रेम की पींगें बढ़ा रहा हैं तो उसे भी समझाना चाहिए।

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