पतंजलि योग दर्शन में कहा गया है कि
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‘उदानजयाज्वलपङ्कण्टकादिष्वसङ्गउत्क्रान्तिश्च।’
हिन्दी में भावार्थ-‘उदानवायु को जीत लेने से जल, कीचड़ व कण्टकादि का शरीर से संपर्क नहीं रहता जिससे उसकी ऊर्ध्वगति भी होती है।’
व्याख्या-देह में वायु तत्व के पांच रूप है।
1. प्राणवायु जो नासिका से प्रविष्ट होता है।
2. अपानवायु जो नाभि से पांव तक विचरण करता है
3. समानवायु जो हृदय से नाभि तक रहता है।
4. व्यानवायु शरीर की समस्त नाड़ियों में विचरण करता है।
5. उदानवायु जो कंठ में रहता है। अंत समय में सूक्ष्म तत्व का इसी के सहारे बाहर गमन होता है।
आजकल समाज में रोजरोग की प्रधानता है। इसका मुख्य कारण यह है कि मनुष्य ने श्रमसाधना से किनारा कर लिया है। अनेक लोगों में गैस, अपच तथा उच्चरक्तचाप व मधुमेह जैसे रोगों से ग्रसित हैं। यह सब रोग वायुतत्व के बाधित होने से होते हैं। योगसाधना के नियमित अभ्यास से वायुतत्व के समस्त तत्वों पर नियंत्रण हो जाता है। वायुतत्व पर नियंत्रण से मन का भटकाव भी समाप्त होता है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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