Tuesday, October 21, 2008

भर्तृहरि शतकः सहायता करने वाले दिखावा नहीं करते

भर्तृहरि नीति शतक में कहा गया है कि
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पद्माकरं दिनकरो विकची करोति
चन्द्रो विकासयति कैरवचक्रवालम्|
नाभ्यर्थितो जलधरोऽपि जलं ददाति
संत स्वयं परहिते विहिताभियोगाः||
     हिंदी में भावार्थ- बिना याचना किये सूर्य नारायण संसार में प्रकाश का दान करते है। चंद्रमा कुमुदिनी को उज्जवलता प्रदान करता है। कोई प्रार्थना नहीं करता तब भी बादल स्वयं ही वर्षा कर देते हैं। उसी प्रकार सहृदय मनुष्य स्वयं ही बिना किसी दिखावे के दूसरों की सहायता करने के लिये तत्पर रहते हैं।
     वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या- आज के आधुनिक युग में समाज सेवा करना फैशन हो सकता है पर उससे किसी का भला होगा यह विचार करना भी व्यर्थ है। टीवी चैनलों और समाचार पत्रों में समाज सेवा करने वालों  समाचार नित्य प्रतिदिन  आना एक विज्ञापन से अधिक कुछ नहीं होता। कैमरे के सामने बाढ़ या अकाल पीडि़तों को सहायता देने के फोटो देखकर यह नहीं समझ लेना चाहिये कि वह मदद है बल्कि वह एक प्रचार है। बिना स्वार्थ के सहायता  करने वाले लोग कभी इस तरह के दिखावे में नहीं आते। जो दिखाकर मदद कर रहे हैं उनसे पीछे प्रचार पाना ही उनका उद्देश्य है। इस तरह की समाज सेवा की गतिविधियों में वही लोग सक्रिय देखे जाते हैं जिनकी समाजसेवक की छवि छद्म रूप होती है जबकि दरअसल उनका लक्ष्य दूसरा ही होता है| उनके प्रयासों से  समाज का उद्धार कभी नहीं होता। समाज के सच्चे हितैषी तो वही होते हैं जो बिना प्रचार के किसी की याचना न होने पर भी सहायता के लिये पहुंच जाते हैं। जिनके हृदय में किसी की सहायता का भाव उस मनुष्य को बिना किसी को दिखाये सहायता के लिये तत्पर होना चाहिये-यह सोचकर कि वह एक मनुष्य है और यह उसका धर्म है। अगर आप सहायता का प्रचार करते हैं तो दान से मिलने वाले पुण्य का नाश करते हैं।
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