Monday, September 14, 2015

हिन्दी दिवस पर दीपकबापूवाणी (DeepakBapuWani-Kavita On HindiDiwas)


हृदय धड़के मातृभाषा में, भाव परायी बाज़ार में मत खोलो।
कहें दीपकबापू खुशी हो या गम, निज शब्द हिन्दी में बोलो।।
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दिल के जज़्बात अपने हैं, अपनी जुबां हिन्दी में बोलो।
दीपकबापू हमदर्दी के रास्ते अब अंग्रेजी से मत खोलो।।
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अंग्रेजी में सम्मान कमाया नहीं, आत्मसम्मान भी समाया नहीं।
दीपकबापूअब भी गरीब, खुद की जुबां का भी साया नहीं।
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गोरी जुबां अर्थ की काली, कैसे दिल में अपने डाली।
दीपकबापू हिन्दी में लेते अर्थ, अंग्रेजी में बजाते ताली।
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राजाओं की स्तुति रोज करते, हिन्दीदिवस पर भी पेट में भोज भरते।
दीपकबापूमातृभाषा के नाम पर, कभी हिंग्लिश के शोज भी करते।।
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हिन्दी के शब्द महंगे नहीं बिकते, इसलिये बाज़ार में कम दिखते।
दीपकबापू अंग्रेजी के सेवक, छद्मरूप में हिंदी की दम दिखते।।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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