दुराचारी च दृर्दृष्टिर्दुराऽऽवासी च दुर्जनः।
यन्मैत्री क्रियते पुम्भिर्नरः शीध्रं विनश्यति।।
हिन्दी में भावार्थ-दुराचारी, दुष्ट, कुदृष्टि रखने वाले, गंदे स्थान का निवासी दुर्जन आदमी से मित्रता करने पर सज्जन का भी शीघ्र पतन हो जाता है।
दुर्जनस्य च सर्पस्य वरं सर्पो न दुर्जनः।
सर्पो दंशति कालेन दुर्जनस्तु पदे पदे।।
हिन्दी में भावार्थ- नीति विशारद चाणक्य महाराज का कहना है कि सर्प की अपेक्षा दुष्ट और बुरी नीयत वाला मनुष्य खतरनाक होता है। सर्प तो समय आने पर अपनी रक्षा के लिये भयभीत होने पर ही काटता है जबकि दुष्ट आदमी तो अपने अंदर बिना किसी बैर के ही दूसरे को हानि पहुंचाने का विचार पाले रहता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-हमारे समाज में ऐसी मनोवृत्ति बन गयी है कि लोग दादाओं, गुंडों और तथा पेशेवर अपराधियों की संगत में स्वयं को सुरक्षित अनुभव करते हैं। स्थित यह है कि जो कारावास से होकर लौटा हो समाज उससे डरने लगता है और उनसे संबंध रखकर लोग अपने लिये सुरक्षा का प्रबंध करते हैं। इतना ही नहीं भ्रष्टाचार, ठगी और धर्म के नाम पर धंधा करने वालों को भी सम्मान दिया जाता है। इसी कारण धीरे धीरे पूरा समाज विकृत मानसिकता की चपेट में आता जा रहा है। सभी जानते हैं कि मृत्य निश्चित है फिर भी आदमी आतंकियों से डरते हैं। अब तो ऐसा भी होने लगा है कि अपराधियों, आतंकियों और व्यसनियों को भी उनके जाति, धर्म, भाषा तथा क्षेत्रीय समूहों द्वारा संरक्षण और समर्थन दिया जा रहा है जिससे निरंतन अपराध और आतंक बढ़ रहा है।
इस तरह की मानसिकता स्वयं के लिये ही खतरनाक है। अगर आप यह सोचते हैं कि अपनी जाति, भाषा, धर्म, और क्षेत्रीय समूह के अपराधियों और आतंकियों से समाज की रक्षा होगी तो यह मूर्खतापूर्ण है। अपराधी, आतंकी, भ्रष्टाचारी तथा ठगी लोग तो सांप से अधिक खतरनाक हैं जो हर पल दूसरे को काटने की फिराक में रहते हैं और ऐसा करते हुए वह जाति, धर्म, भाषा तथा अन्य आधार पर कोई विचार नहीं करते और विरोध करने पर अपने ही आदमी को हानि पहुंचाने से भी नहीं चूकते।
संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwaliorयन्मैत्री क्रियते पुम्भिर्नरः शीध्रं विनश्यति।।
हिन्दी में भावार्थ-दुराचारी, दुष्ट, कुदृष्टि रखने वाले, गंदे स्थान का निवासी दुर्जन आदमी से मित्रता करने पर सज्जन का भी शीघ्र पतन हो जाता है।
दुर्जनस्य च सर्पस्य वरं सर्पो न दुर्जनः।
सर्पो दंशति कालेन दुर्जनस्तु पदे पदे।।
हिन्दी में भावार्थ- नीति विशारद चाणक्य महाराज का कहना है कि सर्प की अपेक्षा दुष्ट और बुरी नीयत वाला मनुष्य खतरनाक होता है। सर्प तो समय आने पर अपनी रक्षा के लिये भयभीत होने पर ही काटता है जबकि दुष्ट आदमी तो अपने अंदर बिना किसी बैर के ही दूसरे को हानि पहुंचाने का विचार पाले रहता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-हमारे समाज में ऐसी मनोवृत्ति बन गयी है कि लोग दादाओं, गुंडों और तथा पेशेवर अपराधियों की संगत में स्वयं को सुरक्षित अनुभव करते हैं। स्थित यह है कि जो कारावास से होकर लौटा हो समाज उससे डरने लगता है और उनसे संबंध रखकर लोग अपने लिये सुरक्षा का प्रबंध करते हैं। इतना ही नहीं भ्रष्टाचार, ठगी और धर्म के नाम पर धंधा करने वालों को भी सम्मान दिया जाता है। इसी कारण धीरे धीरे पूरा समाज विकृत मानसिकता की चपेट में आता जा रहा है। सभी जानते हैं कि मृत्य निश्चित है फिर भी आदमी आतंकियों से डरते हैं। अब तो ऐसा भी होने लगा है कि अपराधियों, आतंकियों और व्यसनियों को भी उनके जाति, धर्म, भाषा तथा क्षेत्रीय समूहों द्वारा संरक्षण और समर्थन दिया जा रहा है जिससे निरंतन अपराध और आतंक बढ़ रहा है।
इस तरह की मानसिकता स्वयं के लिये ही खतरनाक है। अगर आप यह सोचते हैं कि अपनी जाति, भाषा, धर्म, और क्षेत्रीय समूह के अपराधियों और आतंकियों से समाज की रक्षा होगी तो यह मूर्खतापूर्ण है। अपराधी, आतंकी, भ्रष्टाचारी तथा ठगी लोग तो सांप से अधिक खतरनाक हैं जो हर पल दूसरे को काटने की फिराक में रहते हैं और ऐसा करते हुए वह जाति, धर्म, भाषा तथा अन्य आधार पर कोई विचार नहीं करते और विरोध करने पर अपने ही आदमी को हानि पहुंचाने से भी नहीं चूकते।
http://anant-shabd.blogspot.com
------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.शब्दलेख सारथि
3.दीपक भारतदीप का चिंतन