Saturday, September 4, 2010

विदुर नीति-अधिक विश्वास किसी पर न करें (adhik vishvas na karen-vidur neeti in hindi)

अनीर्षुर्गुप्तदारश्च संविभागी पियंवदः।
श्लक्ष्णो मधुरपाक् स्वीणां न चासां वशगो भवेत्।।
हिन्दी में भावार्थ-
मनुष्य ईर्ष्या रहित, स्त्रियों की रक्षा करने वाला, संपत्ति का न्यायपूर्वक बांटने वाला, प्रिय वाणी बोलने वाला, साफ सुथरा तथा स्त्रियों से सद्व्यवहार करने वाला हो परंतु किसी के वश में न हो।
न विश्वसेदविश्वस्ते विश्वस्ते नातिविश्वसेत्।
विश्वासाद भयमुत्पन्नं मूलान्यपि निकृन्तति।
हिन्दी में भावार्थ-
जिस मनुष्य का विश्वास प्रमाणिक न हो उस पर तो विश्वास करना ही नहंी चाहिए पर जिस पर जो योग्य हो उस भी अधिक विश्वास न करें। विश्वास से जो भय उत्पन्न होता है वह मूल लक्ष्य को ही नष्ट कर डालता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-जहां तक हो सके मनुष्य को अपने विवेक से काम लेना चाहिये। सुनना सभी की चाहिए पर करना तो मन की ही ठीक रहता है।। अनेक लोग दूसरों के कहने में आकर अपनी हानि कर डालते हैं। हर कोई अपनी शक्ति और लक्ष्यों के बारे में अधिक केवल स्वयं ही जान सकता है। दूसरा उसे राय दे सकता है पर इसका अर्थ कदापि नहीं कि उसे मान लिया जाये। दूसरे की बात पर विचार करना चाहिये पर निर्णय लेते समय अपने विवेक का उपयोग करना ही अच्छा है।
इस संसार में बिना विश्वास किये काम नहीं चल सकता पर उसकी सीमायें हैं। हम अनेक बाद अपने मन की बात दूसरे से यह प्रमाण पत्र लेने के बाद उसे बता देते हैं कि वह किसी से कहेगा नहीं पर उस समय यह सोचना चाहिए कि जब हम अपनी बात स्वयं मन में नहीं रख सके तब दूसरा कैसे रखेगा? अतः विश्वास एक सीमा तक ही करना चाहिये।
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संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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