Saturday, October 30, 2010

श्रीगुरुवाणी-नाम स्मरण करने वाले के दिन और रात सुहावनी होती हैं (shri guruvani-naam samran se din aur raat suhavane)

दिनु रैणि सभ सुहावणे पिआरे जितु जपीअै हरि नाउ।’
हिन्दी में भावार्थ-
श्री गुरुवाणी में संत फरीद की इस रचना के अनुसार जब मनुष्य ईश्वर के नाम का स्मरण हृदय से करता है तो उसके लिए सभी दिन और रातें सुहावनी हो जाती हैं।
माइआ कारनि बिदिआ बेयहु जनमु अबिरथा जाइ।
हिन्दी में भावार्थ-
श्री गुरुग्रंथ साहिब के अनुसार पैसे के लिए विद्या बेचने वालों जन्म व्यर्थ जाता है।
फरीदा जा लबहु त नेहु किआ लबु त कूढ़ा नेहु।
किचरु झति लघाइअै छप्पर लुटै मेहु।
हिन्दी में भावार्थ-
संत फरीद के अनुसार अगर परमात्मा की भक्ति लालच या लोभवश की जाती है तो वह सच्ची नहीं है। एक तरह से बहुत बड़ा झूठ है। ठीक वैसे ही जैसे टूटे हुए छप्पर से पानी बह जाता है वैसा ही हश्र कामना सहित भक्ति का होता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-श्रीगुरुग्रंथ साहिब के अनेक संत कवियों की रचनायें शामिल हैं जिसमें संत फरीद का नाम भी आता है। इन सभी संत कवियों ने निष्काम भक्ति के लाभ बताये हैं। दरअसल मनुष्य कामनाओं के साथ हमेशा जीता है और इस कारण पैदा होनी वाली एकरसता अंततः मन में भारी ऊब तथा खीज पैदा करती है। कई लोग मूड बदलने के लिये कहीं पर्यटन तथा पिकनिक के लिये जाते हैं पर फिर लौटते हैं तो वही असंतोष जीवन को घेर लेता है जिसके साथ जी रहे हैं।
अपने मन का मार्ग बदलने के लिये निष्काम होना जरूरी है इसके लिये परमात्मा का नाम स्मरण करना एक श्रेष्ठ मार्ग हैं। मुश्किल यह है कि अज्ञानी मनुष्य भक्ति में कामना रखकर ही चल पड़ता है और इससे उसको कोई लाभ नहीं मिलता। इतना ही नहंी अनेक लोग तो ज्ञान प्राप्त कर उसे बेचकर अपने मन को संतोष देने का प्रयास करते हैं। ऐसे ढोंगी भले ही समाज में पुजते हैं पर मन तो उनका भी संताप से भरा रहता है। निष्काम भक्ति तभी संभव है जब अपने मन को केवल नाम स्मरण में यह सोचकर लगाया जाये कि उससे कोई भौतिक लाभ हो या नहीं पर शांति मिलनी चाहिए।
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संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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