संसार! तव पर्यन्तपदवी न दवीयसी।
अन्तरा दुस्तराः न स्युर्यदि ते मदिरेक्षणा।।
हिन्दी में भावार्थ-यहां भर्तृहरि महाराज कहते हैं कि ‘ओ संसार, तुझे पार पाना कोई कठिन काम नहीं था अगर मदिरा से भरी आखों में न देखा होता।
अन्तरा दुस्तराः न स्युर्यदि ते मदिरेक्षणा।।
हिन्दी में भावार्थ-यहां भर्तृहरि महाराज कहते हैं कि ‘ओ संसार, तुझे पार पाना कोई कठिन काम नहीं था अगर मदिरा से भरी आखों में न देखा होता।
तावन्महत्तवं पाण्डितयं केलीनत्वं विवेकता।
यावज्जवलति नांगेषु हतः पंचेषु पावकः।।
हिन्दी में भावार्थ-किसी भी मनुष्य में सज्जनता, कुलीनता, तथा विवेक का भाव तभी तक रहता है जब उसके हृदय में कामदेव की ज्वाला नहीं धधकी होती। कामदेव का हमला होने पर पर सारे अच्छे भाव नष्ट हो जाते है।
यावज्जवलति नांगेषु हतः पंचेषु पावकः।।
हिन्दी में भावार्थ-किसी भी मनुष्य में सज्जनता, कुलीनता, तथा विवेक का भाव तभी तक रहता है जब उसके हृदय में कामदेव की ज्वाला नहीं धधकी होती। कामदेव का हमला होने पर पर सारे अच्छे भाव नष्ट हो जाते है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-श्रीमद्भागवत गीता में लिखा हुआ है कि ‘गुण ही गुणों में बरतते है।’ इस सूत्र में बहुत बड़ा विज्ञान दर्शन अंतर्निहित हैं। इस संसार में जितने भी देहधारी जीव हैं सभी को रोटी और काम की भूख का भाव घेरे रहता है अलबत्ता पशु पक्षी कभी इसे छिपाते नहीं पर मनुष्यों में कुछ लोग अपने को सचरित्र दिखने के लिये अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण का झूठा दावा करते है। सच तो यह है कि पंचतत्वों से बनी इस देह मे तन और मन दोनों प्रकार की भूख लगती है। भूख चाहे रोटी की हो या कामवासना की चरम पर आने पर मनुष्य की बुद्धि और विवेक को नष्ट कर देती है। मनुष्य चाहे या नहीं उसे अपनी भूख को शांत रखने का प्रयास करना पड़ता है। जो लोग दिखावा नहंी करते वह तो सामान्य रूप से रहते हैं पर जिनको इंद्रिय विेजेता दिखना है वह ढेर सार नाटकबाजी करते हैं। देखा यह गया है कि ऐसे ही नाटकबाज धर्म के व्यापार में अधिक लिप्त हैं और उन पर ही यौन शोषण के आरोप लगते हैं क्योंकि वह स्वयं को सिद्ध दिखाने के लिये छिपकर अपनी भूख मिटाने का प्रयास करते हैं और अंतत: उनका रास्ता अपराध की ओर जाता है।
संकलक,लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwaliorhttp://anant-shabd.blogspot.com
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