Sunday, September 16, 2012

अथर्ववेद से सन्देश-आपस में फूट डालने से बचें (aapas mein foot dalne se bachen)


हम जब भारतीय राजनीतिक इतिहास का बात करते हैं तो यह देखकर दुःख होता है को हमारे देश में विदेशी आक्रान्ताओं को  यहीं के लोगों ने आक्रमण के लिये आमंत्रण दिया। इसका कारण यह है कि राजनीति, समाज, अर्थ, और धर्म के शिखर पर बैठे लोगों अपने अहंकाशवश  यहां हमेशा ही आम इंसान को तुच्छ समझा। यही कारण है कि विदेशी आक्रांताओं ने यहां जब इन्हीं लोगों का राज्य, समूह, तथा संगठन ध्वस्त कर उनके प्राणों का हरण किया तब भी समाज का समर्थन  कभी उनको नहीं मिला।  ऐसे शिखर पुरुषों को भले ही आज भी सम्मान से याद किया जाता है पर इतिहास ने कभी तत्कालीन हालातों को दर्ज करते हुए यह नहीं बताया  कि क्या वाकई तत्कालीन  समाज इनसे हमदर्दी रखता था।
अथर्ववेद मे कहा गया है कि
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अदारसृद भवतु
                          हिन्दी में भावार्थ-आपस में कोई फूट डालने वाला न हो।

ब्राह्म्ण स्पतेऽन्मि राष्ट्र वर्घव।
                                 हिन्दी में भावार्थ-सभी ज्ञानी मिलकर राष्ट्र का उत्थान करें।
             सच बात तो यह है कि धर्म, अर्थ, राज्य तथा समाज के सिर पर बैठै लोगों ने आमजन को पांव की जुती समझा। भौतिकता से संपन्न होने पर विपन्न को कीड़ा मकौड़ा समझा यही कारण है कि यहां के आमजनों ने विदेशी आक्रांताओं के हाथों से उनके कुचले जाने पर भी हमदर्दी नहीं दिखाई।  इतिहास से सबक लेना चाहिए पर लगता नहीं है कि हमारे देश में  सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक तथा आर्थिक शिखरों पर वर्चस्व के लिये अपास में द्वेरथ  करा  रहे लोगों ने ऐसा किया है।  धन, बल और पद को जहां शक्ति का पर्याय मान लिया गया है वहां ज्ञानियों की हैसियत केवल लिपिक या अनुवादक जितनी बन गयी है। यही कारण है कि ज्ञानी लोग मौन होकर सब देखते हैं।  हालांकि होना तो यह चाहिए कि सभी ज्ञान मिलकर देश के लिये काम करें पर इसके लिये आमजन को भी अपनी प्रतिबद्धता दिखानी होगी।
दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 


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