Saturday, November 24, 2012

ऋग्वेद से सन्देश-ज्ञान से द्वेष को मार

                      हमारे वेदों में अनेक ऐसी बातें कही गयी हैं जिनका महत्व इस संसार में कभी महत्व नहीं होता।  इसका कारण यह है कि इस संसार में समय के साथ भौतिक स्वरूप के साथ ही लोगों के रहन सहन, चाल चलन तथा कार्य करने के तरीकों में बदलाव तो संभव है पर उसके अंदर की मूल प्रकृतियों का निवास स्थाई रूप से रहता है।  इन मूल प्रकृतियों तथा उनकी निवृति के ज्ञान का (जिसे हम अध्यात्मिक विज्ञान भी कह सकते हैं) जो वर्णन इन वेदों में वर्णित है।  उनकी विषय सामग्री का  अध्ययन चाहे जब किया जाये उनमें नवीनता बनी रहती है।
ऋग्वेद में कहा गया है कि
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ब्रह्माद्विषः अवजहि।
हिन्दी में अर्थ-‘‘ज्ञान से द्वेष करने वाले को मार।’’
अहः अहःशुन्ध्युः परिपदां।।’’
हिन्दी में अर्थ-‘‘नित्य स्वच्छता रखने वाला रोगों को दूर करता है।’’
             अधिकतर लोग धार्मिक कर्मकांडों को ही अपने जीवन का हिस्सा बनाते हैं पर आध्यात्मिक ज्ञान उनके लिये बुढ़ापे में जानने वाला विषय होता है जबकि इसका ज्ञान अगर बचपन से हो जाये तो जिंदगी आराम से बिताई जा सकती है। इसका कारण यह है कि सांसरिक विषयों से संबंध तो बचपन से ही हो जाता है और अध्यात्मिक ज्ञान के अभाव आम मनुष्य उसमें इस तरह लिप्त हो जाता है कि उसके लिये सुख कम दुःख अधिक प्रकट होते हैं।  अधिकतर मनुष्यों के  अंदर अहंकार मोह तथा लोभ की  प्रकृतियां विद्यमान रहती हैं जो उसे ज्ञान से परे रखती है।  यह प्रकृतियां ज्ञान से द्वेष करती हैं।  ज्ञानी से चिढ़ाती हैं।
           अध्यात्मिक ज्ञान के अभाव में आदमी की न  केवल देह  बल्कि मन तथा विचारों में भी अस्वच्छता का वास हो जाता है।  इस तरह की समस्या से बचने का उपाय यही है कि  हम अपने अध्यात्मिक ग्रंथों का अध्ययन कर अपनी बुद्धि, विचार तथा मन को शुद्ध रखने का प्रयास करें।
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संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
writer and editor-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep', Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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