Monday, December 17, 2007

नये खेल के नये मदारी

मैंने रास्ते पर कई मदारी देखे हैं जो जोर-जोर से चिल्लाकर लोगों का ध्यान अपनी और आकर्षित करते हैं और फिर कभी बंदरिया का नाच दिखाकर, कभी सांप नेवले की जंग दिखाकर और कभी कुछ अन्य दिखाकर लोगों की जेब से पैसा निकालते हैं-इनमें कुछ खेल दिखाकर बाद में अपनी दवा वगैरह भी बेचते हैं। ऐसे मदारियों को आमतौर से सम्मान की तरह नहीं देखा जाता है।



मैं आजकल टीवी पर चैनलों को देखता हूँ तो मुझे मदारियों और उनके कार्यक्रमों में कोई अंतर नहीं दिखाई देता। खासतौर पर नृत्य और गानों की प्रतियोगिताएं तो मदारियों की तरह ही चलाई जा रहीं है। इसके एंकर इतनी जोर से चिल्लाते हैं जैसे मदारी की तरह अपने आसपास भीड़ एकत्रित करना हो। अगर घर में कोई बैठकर नहीं सुन रहा है तो वह भी आ जाये और कोई टीवी के सामने बैठकर भी कोई देख-सुन नहीं रहा है वह भी देखने लगे शायद इसलिए ही उसके एंकर इतनी जोर से चिल्लाते हैं। प्रतियोगियों को कोइ परिणाम सुनाने से पहले ऐसी धुन बजती है जैसे कोई सस्पेंस का सीन सामने हो और कई बार ऐसे बात की जाती है मानो अभी वह बाहर होने वाला हो फिर उसे रख लिया जाता है। इस तरह वह सारे काम किये जाते हैं जो मदारी करते हैं। इन प्रतियोगिताएं में धर्मवाद, क्षेत्रवाद और भाषावाद का उपयोग इतनी चालाकी से किया जाता है कि कोई समझ ही नहीं सके कि कैसे उनकी प्रशंसा कर एस.एम्.एस.कर उनकी जेब से पैसे निकल रहे हैं।



हालांकि यह भी नये तरह के मदारी हैं पर वहाँ मौजूद प्रतियोगियों के साथ उनके माता-पिता को भी भावुक कर उनकी आंखों से गम और खुशी की आंसू निकलवाकर दर्शकों को बाँध देते हैं। इनको एंकर कहा जाता है और लोग बडे चाव से देखते हैं जबकि इनकी वजह से अपने देश के पुराने मदारियों का काम मंदा होता जा रहा है। समस्या यह है कि कि पुराने मदारियों को देखना या न देखना अपनी इच्छा पर निर्भर था पर यह तो जबरन घर में घुसे हुए हैं। घर के दो सदस्यों को पसंद हो और दो को नहीं तो आखिर इनकों वह भी झेलते हैं जो नहीं देखना चाहते। कुल मिलकार इन्हें नये खेल के नये मदारी ही कहा जा सकता है।

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