Tuesday, January 15, 2008

संत कबीर वाणी: जो शूरवीर प्रेम में घायल होते हैं

घायल की गति और है, औरन की गति और
प्रेम बाण हिरदै लगा, रहा कबीर ठौर


संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं जो शूरवीर प्रेम में घायल होते हैं उनके तन-मन की गति अन्य लोगों से अलग होती है। हृदय में प्रेम-बाण लग जाने पर प्रेमी अपने स्थान पर ठहर जाता है।
भावार्थ- यहाँ आशय यह है कि जिसको भगवान से प्रेम होता है उसकी दशा सामान्य लोगों से अलग हो जाती है वह तो केवल भगवान की भक्ति में लीन हो जाते हैं। उन्हें तो बस सत्संग और स्मरण में ही मजा आता है।

चित चेतन ताज़ी करै, लौ की करै लगाम
शब्द गुरु का ताजना, पहुचाई संत सुठाम


अपनी चित्त वृत्ति को घोड़ी बनाएं, उस पर ध्यान लगाएं और सदगुरू के शब्द-ज्ञान का कोडा लें। इस प्रकार कुशल संत और साधक भगवान की भक्ति कर अपना लक्ष्य प्राप्त कर लेते हैं।

भावार्थ-आदमी अगर अपने चित्त पर नियंत्रण करना सीख ले तो उसके लिए कोई काम कठिन नहीं है बस इसके लिए भगवान में मन लगा चाहिए। उनका नाम स्मरण अपने आप में बहुत बड़ी शक्ति है और उससे भक्त में बहुत बड़ी शक्ति आती है।

1 comment:

राजीव तनेजा said...

सुन्दर व्याख्या....

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