Friday, December 12, 2008

भृतहरि शतक: साधु पुरुष होते हैं गेंद के समान

पातितोऽपि कराघातैरुत्पत्त्येव कन्दुकः
प्रायेण साधुवृत्तोनामस्थाविन्यो विपत्तयः


हिंदी में भावार्थ-जिस तरह गेंद जमीन पर पटक दिये जाने के बाद फिर वापस आ जाती है वैसे ही साधु सत्पुरुष भी संकट आने पर उसमें से सहजता से निकल आते हैं।

वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-मनुष्य के लिये नैतिक आचरण का बहुत महत्व है। सुख सुविधा और भौतिक साधनों के प्राप्ति के लिये लोग अपने आचरण पर ध्यान नहीं देते। सभी लोग यह कहते हैं कि ‘ईमानदारी या नैतिकता से आजकल काम कहां चलता है।’ सच तो यह है कि भ्रष्ट आचरण के मामले में कोई कम नहीं है-यह अलग बात है कि किसी को भ्रष्टाचार करने के अवसर अधिक मिलते हैं तो किसी को कम। साधुता और सदाचरण को बाहर के लोग ही नहीं वरन घर के लोग ही मजाक उड़ाते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि पूरा समाज ही धन,यश और शक्ति पाने के लिये मदांध हो रहा है। यही कारण है कि कहने वाले यही कहते हैं कि ‘आजकल कोई सुखी नहीं है।’

समाज में व्याप्त निराधा और हताशा का जिक्र करें तो ऐसा नहीं लगता कि वह उससे उबरने वाला है क्योंकि नैतिक आचरण और अध्यात्मिक ज्ञान को लोग धारण करना आजकल एक मूर्खता समझने लगे हैं। सभी लोग भ्रष्ट नहीं है पर साधु और सदाचर के भाव से ओतप्रोत लोगों की संख्या बहुत कम है और वही इस तनाव भरे माहौल में कुछ सुख का अनुभव कर पाते हैं। लोग कमा खा रहे हैं पर फिर भी सुखी नहीं है। उनकी पूरी उम्र तनाव और दुःख से लड़ते बीत रही है क्योंकि उनके आचरण में कमियां होने से मानसिक दृढ़ता नहीं है इसलिये वह उबर नहीं पाते।

जिन लोगों का नैतिक आचरण ऊंचा है वह अपने पथ से विचलित नहीं होते क्येांकि उनके मन में किसी प्रकार का भय नहीं होता इसलिये वह विपत्तियों से जूझ कर आगे बढ़ते जाते हैं। वह मानसिक तनाव के कूंऐ में हमेशा डूबे नहीं रहते।
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