संक्षिप्त व्याख्या-अगर हमें कोई कार्य या अभियान प्रारंभ करना है और उसके लिये हमारे साधन सीमित और छोटे हैं तो भी प्रारंभ कर देना चाहिये। जैसे जैसे हम उस काम या अभियान में आगे बढ़ते जायेंगे वैसे वैसे ही साधन स्वतः बढ़ते जायेंगे। इस बात की परवाह नहीं करना चाहिये कि हम गरीब या कमजोर हैं। अगर हमार उद्देश्य पवित्र और जनहित में है तो एक नहीं हजारों साधन अपने आप आ जायेंगे। मुख्य बात तो काम शुरु करने की है।
2.जिसकी प्रसन्नता से किसी को कोई लाभ नहीं होता तो उसके क्रोध की भी कोई परवाह नहीं करता-जैसे कोई स्त्री नपुंसक पति नहीं चाहती।
संक्षिप्त व्याख्या-जीवन में ऐसे अनेक अवसर आते हैं जब कोई हमें प्रसन्न करता है तब उसका प्रतिफल उसे देना चाहिये। कई बार ऐसा होता है कि कोई हमारा काम कर देता पर हम यह मानकर उसकी उपेक्षा कर देते हैं कि यह तो उसका कर्तव्य या धर्म है उसे करना ही था। अगर व्यक्ति हमसे छोटा होता है तो लगता है कि उसने हमारे व्यक्तित्व के प्रभाव में कर दिया तो उसे क्या देना?
यह भाव रखना ठीक नहीं है। जब लोगों को यह पता लग जाता है कि प्रसन्न होने पर यह व्यक्ति किसी को कुछ नहीं देता तो फिर उसके क्रोध की भी परवाह कोई नहीं करता।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप
3 comments:
"well said, good thoughts"
regards
सही कहा . अच्छे विचार ! आभार !
बहुत सुंदर और उपयोगी विचार - धन्यवाद!
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