नरक जाय जनमै मरै, मुक्ति कबहु नहिं दोय
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते है कि जो व्यक्ति साधु-संतों की निंदा करता है वह सीधे नरक में जाता है और कभी भी जनम मरण के बंधन से मुक्ति नहीं पाता।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-आजकल साधु संतों और पीर फकीरों के रूप में बहुत सारे ढोंगी मिल जायेंगे। उनकी ठगी और ढोंग समाज से छिपते नहीं है और उनकी चर्चा कहीं करनी पड़ती है। अगर हमें लगता है कि कोई साधु संत या पीर फकीर ढोंगी है तो लोगों को आगाह करें-यह हमारा कर्तव्य भी है। यह निंदा समान नही है। दरअसल जो सचमुच में संत हैं और जिन्होंने वास्तव में समाज को कुछ दिया है-ऐसे संतों की निंदा करना अपने लिये पाप का बीज बोना है।
स्वच्छ वस्त्र धारण करने वाले अनेक संतोंं ने समाज में धार्मिक भ्रष्टाचार फैलाया है और उनसे सतर्कता बरतना और लोगों को सचेत करना कोई बुरी बात नहीं है। हां, वैचारिक आधार या कार्यशैली पर जो साधु संत या पीर फकीर हमारे लिये प्रिय नहीं है,उनकी निंदा करना अनुचित है। इसका आशय यह नहीं है कि जिन्होंने साधु संत या पीर फकीर का चोला ओढ़ने वाले हर व्यक्ति को सिद्ध मान लिया जाये क्योंकि पैसा कमाने के लिये अनेक लोग ऐसे चोले पहनने लगे हैं पर जिनके बारे में यह हम जानते हैं कि वह वाकई संत है उनके बारे में कोई परनिंदा वाक्य नहीं कहना चाहिये। उसी तरह कोई किसी गुरु को मानता है तो उसके सामने उनकी निंदा नहीं करना चाहिये। अपने देश में अनेक गुरु हैं और कहीं कहीं तो ऐसा भी होता है कि एक ही परिवार के सदस्यों के अलग अलग गुरु हेाते हैं। ऐसे में एक दूसरे के गुरु की निंदा करने पर पारिवारिक तनाव तो फैलता ही है। इतना ही नहीं समाज में भी अनेक बार गुरुओं के शिष्य एक दूसरे की निंदा कर झगड़ा करने लगते हैं।
परनिंदा या दूसरे को मानसिक दुःख देना पाप है और ऐसा करने वाले की न तो इस दुनियां में मुक्ति हो पाती है और परलोक में ही उसे शांति मिलती है।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप
2 comments:
samarth ko nahi dosh gunsaai,
भाई जी !
आपका किया गया कार्य भारतीय संस्कृति के लिए धरोहर साबित होगा ! आपके इस ब्लाग का लिंक "मेरे गीत" पर देकर मैं गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ !
इस खूबसूरत धरोहर की याद ताज़ा करने के लिए, आपका आभारी हूँ !
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