पल पल करके लागते, देखु कहां धौ होय
कविवर रहीम कहते हैं भारी संकट झेलने वाला व्यक्ति न तो रात को चैन से सो पाता है और न दिन में जाग पाता है। उसके हर अपने सामने संकट आता दिखता है। तमाम तरह की आशंकायें और भय उसके मन में समा जाते हैं।
रहिमन ठठरी धूर की, रही पवन ते पूरि
,गांठ युक्ति की खुलि गई, अन्त धूरि की धूरि
कविवर रहीम कहते हैं कि यह देह एक धूल की भरी हुई गठरी है जिसमें पांचो तत्व समाहित है। जब वह सब बिखर कर अलग हो जाते हैं तब यह अस्थि पंजर पड़ा रहता है और उसी धूल में मिल जाता है जहां से उत्पन्न हुआ था।
रहिमन तब लगि ठहरिये, दान, मान, सम्मान
घटत मान देखिए जबहि, तुरतहि करिय पयान
कविवर रहीम कहते हैं कि किसी भी स्थान पर तब तक ठहरिये आपको मान और सम्मान के साथ कुछ मिलता है। जब अपना मान सम्मान वहां कम होते देखें तो वहां से पलायन कर जाईये।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप
4 comments:
जब अपना मान सम्मान वहां कम होते देखें तो वहां से पलायन कर जाईये।
"wonderful and true thought"
Regards
बहुत अच्छी नसीहत है...
आभार-
बहुत खूब, धन्यवाद!
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