जे पर पीर न जानहीं, ते काफिर बे पीर
संत कबीर शिरोमणि कबीरदास जी के इस दोहे का आशय यह है है कि वास्तव में वही गुरु या पीर सच्चा है जो आदमी दूसरे की पीड़ा को अपनी ही समझते हैं। जिनके पास दूसरे की पीड़ा की समझ नहीं हैं वह बेरहम इंसान हैं। उनको तो दुष्ट ही समझा जाना चाहिये।
कहता हूं कहि जात हूं, कहा जू मान हमार
जाका गला तुम काटि हो, सो फिर काटि तुम्हार
संत कबीरदास जी ने जीव हिंसा को अनुचित ठहराते हुए कहा कि जिसका गला तुम आज काट रहे हो वह अगले जन्म में तुम्हारा गला काटेगा।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-हिंसा का अंत प्रतिहिंसा से ही होता है। संत कबीरदास जी ने कहा है कि जिसका गला तुम काट रहे हो वह तुम्हारा भी काटेगा। इस पर कुछ लोग कह सकते हैं कि जिसका गला कट गया वह तेा मर गया अब क्या गला काटेगा। जहां तक अगले जन्म का प्रश्न है तो वह किसने देखा है?
ऐसा सोचना भ्रम मात्र है। जब कोई व्यक्ति हिंसा करता है तो दूसरों पर उसकी प्रतिक्रिया हेाती है और कई लोग तो क्रोधित भी होते हैं भले ही हिंसा उनके साथ नहीं हो रही हो। हिंसक व्यक्ति की समाज में छबि खराब होती है और फलस्वरूप दूसरे हिंसक व्यक्ति उस पर दृष्टिपात किये रहते हैं और अवसर आने पर वही वार करते हैं। यह जरूरी नहीं है कि हिंसा करने वाले ने जिसकी गर्दन काटी हो वह जन्म लेकर गर्दन काटने आये पर हिंसा के मार्ग पर चलने पर व्यक्ति को कभी न कभी दूसरे की हिंसा का शिकार भी होना पड़ता है। अतः चाहे आदमी हो या पशु उसके प्रति हिंसा का तो क्या उसके भाव का भी त्याग करना चाहिये।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप
2 comments:
आभार!!
संत कबीरदास जी ने जीव हिंसा को अनुचित ठहराते हुए कहा कि जिसका गला तुम आज काट रहे हो वह अगले जन्म में तुम्हारा गला काटेगा।"
संत कबीर के शब्द सर-माथे!
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