Saturday, January 23, 2010

रहीम के दोहे-प्रेम का पंथ अत्यंत कठिन (love and life-rahim ke dohe in hindi)

प्रेम पंथ ऐसी कठिन, सब कोउ निबहत नाहिं।
रहिमन मैन-तुरंग चढ़ि, चलिबो पावक माहिं।।
कविवर रहीम जी का कहना है कि प्रेम का पंथ इतना कठिन है कि उस पर हर कोई नहीं चढ़ सकता। कामदेव के घोड़े पर सवारी कर अग्नि के मध्य यात्रा करने जैसा होता है।
बड़ माया को दोष यह, जो कबहूं घटि जाय।
तो रहीम मरिबो भलो, दुख सहि जिय बलाय।
कविवर रहीम के मतानुसार माया अत्यंत चंचला है। कभी मनुष्य के पास बढ़ती है तो कभी घट जाती है। जब मनुष्य के पास माया का भंडार अत्यंत अल्प होता है तो दुख इतना असहनीय लगता है कि उसे मृत्यु ही श्रेयस्कर प्रतीत होती है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-उर्दू शायरी और अंग्रेजी साहित्य का प्रभाव हमारे देश में अधिक ही रहा है जिनमें दैहिक संबंधों में ही प्रेम तलाशा जाता है। दरअसल यह प्रेम केवल स्त्री और पुरुष संबंधों में इर्द गिर्द ही केंद्रित होता है पर यह वासना का प्रतीक भी है। इसमें जब तक कामदेव का प्रभाव है तब तक तो सभी अच्छा लगता है पर जैसे ही वासना शांत होने लगती है वैसे ही वह संबंध अग्नि की तरह जलाने लगते हैं जो कथित प्रेम करने के कारण बने थे। इस प्रेम के कारण अनेक युवक युवतियां प्रेम विवाह तो कर लेते हैं पर जब घर गृहस्थी चलाने की बात आती है तो दोनों का प्रेम हवा हो जाता है। कहीं कहीं प्रेम विवाह होने के कारण समाज और परिवार से समर्थन नहीं मिलता तो मुश्किल हो जाती है। समाज और परिवार की उपेक्षा कर प्रेम विवाह करना आसान है पर गृहस्थी के लिये उनका समर्थन न मिलने पर मुश्किल हो जाती है। कहने का अभिप्राय है कि यह प्रेम दैहिक है और सच्चा प्रेम केवल परमात्मा से किया जा सकता है पर मुश्किल यही है कि सांसरिक विषय इस तरह उलझाये रहते हैं कि मनुष्य अन्य जीवों के प्रेम को ही वास्तविक समझने लगता है।
खेलती माया है और आदमी सोचता है कि ‘मैं खेल रहा हूं’। धन आता है तो सभी को लगता है कि हमारे प्रताप से आ रहा है पर जब जाता है तो तमाम तरह के दर्द छोड़ता है। माया को कोई पकड़ नहीं पाया। आम मनुष्य माया के पीछे दौड़ता है और माया आगे चलती है। संतों के पीछे माया जाती है। उनकी सेविका बनकर उनको इस तरह लुभाती है कि वह उसको स्वामिनी हो जाती है और फिर वह भी उसके पीछे भागते हैं। सच है यह माया महाठगिनी है।
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://anant-shabd.blogspot.com
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