Tuesday, December 29, 2009

विदुर नीति-शीलहीन पुरुष का धन और बंधुओं से भी प्रयोजन सिद्ध नहीं होता (corrupt man loss money and family-hindu dharm sandesh)

जिता सभा वस्त्रवता मिष्टाशा गोमाता जिता।
अध्वा जितो यानवता सर्व शीलवता जितम्।।
हिन्दी में भावार्थ-
जिस तरह अच्छे वस्त्र पहनने वाला सभा, गौ पालने वाला मीठे स्वाद की इच्छा और किसी वाहन पर सवारी करने वाला मार्ग को जीत लेता है उसी तरह शीलवान मनुष्य सभी पर एक साथ विजय प्राप्त करता है।
शील प्रधानं पुरुषे तद् यस्येह प्रणश्चति।
न तस्य जीवितनार्थो न धनेन न बन्धुभि।।
हिन्दी में भावार्थ-
किसी भी पुरुष के चरित्र की प्रधानता उसके शील आचरण से प्रकट होती है। जिसका शील नष्ट हो गया उसकी जीवन, धन और बंधुओं से कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय-पाश्चात्य संस्कृति के चलते हमारे देश में विवाहित पुरुषों में रोमांटिक भाव ढूंढा जाता है। अपनी पत्नी से प्रेम करने वाले को नहीं बल्कि दूसरी जगह मुंह मारने वाले को रोमांटिक कहना एक तरह से समाज में शीलहीनता को प्रोत्साहन देना है। इतिहास गवाह है कि रंगीन मिजाज राजाओं ने न केवल अपने सिंहासन गंवायें बल्कि इतिहास ने उनको खलनायक के रूप में स्थापित किया। एक बात याद रखें कि आज भी हमारे देश के लोगों के हृदय नायक भगवान श्रीराम हैं और यह केवल इसलिये कि उन्होंने जीवन भर ‘एक पत्नी व्रत’ को निभाया। उनके नाम से ही लोगों के हृदय प्रफुल्लित हो उठते हैं।
जब आदमी के पास धन, पद और प्रतिष्ठा आती है तो वह उसका दोहन करने के लिये लालायित होता है और ऐसे में काम की प्रेरणा से वह परिवार के बाहर की स्त्रियों की तरफ आकर्षित होता है। उस समय वह दूसरी लाचार और बेबस स्त्रियों को शोषण भी करते हुए भले ही गौरवान्वित अनुभव करता हो पर सच यही है कि उसकी रंगीन मिजाजी की चर्चा उसकी छवि खराब करती है।
अधिकतर पुरुष भले ही ऐसे काम छिपकर करते हैं और प्रमाण के अभाव में उनकी चर्चा भले ही उनको बचाये रखती है पर जब मामला सार्वजनिक हो जाये तो फिर वह पुरुष चरित्रहीन मान लिया जाता है। अगर ऐसा न होता तो जो पुरुष ऐसे काम करते हैं अपनी रंगीन मिजाजी सरेआम दिखाते। अधिकतर पुरुष उसे इसलिये छिपाते हैं क्योंकि पोल खुल जाने पर उनके पुरुषत्व की चर्चा उन्हें लोकप्रिय नहीं बल्कि उनका सार्वजनिक रूप से मजाक बनाती है। सच बात तो यह है कि अपने पर नियंत्रण करना ही पुरुषत्व का सबसे अधिक मजबूत प्रमाण माना जाता है। यह केवल भारत में हीं उन पश्चिमी देशों में भी है जहां खुला समाज है। वहां के शिखर पुरुष भी अपनी रंगीनियां छिपाते हैं।

जब कामी और रंगीन तबियत के लोगों की पोल खुलती है तो वह कहीं के नहीं रहते। अपने जीवन में उनको संकट का सामना तो करना ही पड़ता है और धन से प्राप्त प्रतिष्ठा भी जाती रहती है। उससे बुरा यह होता है कि परिवार के सदस्य भी उससे नफरते करते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि यह रंगीन मिजाजी पुरुष को पतन के गर्त में ले जाती है।
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://anantraj.blogspot.com
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