Thursday, December 31, 2009

मनुस्मृतिः अपराध न रोकने वालों के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही जरूरी (action against corrupt state officer-hindu dharama sandesh)

 ये नियुक्तासतुकार्येषफ हन्युः कार्याणि कार्विणामम्

धनोष्मणा पञ्चमानांस्तानिन्स्वान्कारवेन्नृपः।।

हिन्दी में भावार्थ-
राज्य द्वारा जो कर्मचारी द्यूत आदि वर्जित पापों को रोकने के नियुक्त किये गये हैं वह पैसे की लालच में ऐसे पापों को नहीं रोकते तो इसका आशय यह है कि वह उसे बढ़ावा दे रहे हैं। इसलिये उनको पद से हटाकर उनका सभी कुछ छीन लेना चाहिये।

कुटशासनकर्तृश्च प्रकृतीनां च दूषकान्।

स्त्रीबालब्राहम्णघ्राश्च हन्यात् द्विट्सेविनस्तथा।

हिन्दी में भावार्थ-
राज्य के प्रतीक चिन्हों की नकल से अपना स्वार्थ निकालने वालों, प्रजा को भ्रष्ट करने में रत, स्त्रियों, बालकों व विद्वानों की हत्या करने वाले और राज्य के शत्रु से संबंध रखने वालों को अतिशीघ्र मार डालना चाहिये।

वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-आज अगर हम पूरे विश्व की व्यवस्थाओं पर दृष्टिपात करें तो जिन व्यसनों को करने और कराने वालों को पापी कहा जाता है वही अब फैशन बनते जा रहे हैं। लोगों में अज्ञान, मोह तथा लालच तथा काम भावना पैदा करने के लिये खुलेआम चालाकी से विज्ञापन की प्रस्तुति देखकर यह आभास अब बहुत कम लोग करते हैं कि लोगों की मानसिकता को भ्रष्ट करना ही प्रचार माध्यमों का उद्देश्य रह गया है।  सभी जानते हैं कि दुनियां के सभी मशहूर खेलों में सट्टा लगता है और अनेक देशों ने तो उसे वैद्यता भी प्रदान कर दी है।  पर्दे पर खेलने वाले खिलाड़ियों को देखकर लगता ही नहीं है कि वह तयशुदा मैच खेल रहे हैं-यह संभव भी नहीं है क्योंकि हर कोई अपने व्यवसाय में माहिर होता है।  पहले तो क्रिकेट के बारे में भी कहा जाता था पर अब फुटबाल और टेनिस जैसे खेलों पर भी उंगलियां उठने लगी हैं।  समाचार पत्र पत्रिकायें अनेक बार अपने यहां ऐसे समाचार छापते हैं। केवल यही नहीं जुआ खेलने के लिये पश्चिमी देशों में तो बकायदा कैसीनो हैं। अपने देश में भी ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो जुआ खेलने और खिलाने के कर्म मेें जुटे हैं। एक मजे की बात यह है कि उन्हीं खेल प्रतियोगिताओं में अधिक सट्टा या जुआ होता है जिसमें देशों के नाम से टीमें भाग लेती हैं। इससे कुछ लोग तो कथित राष्ट्र प्रेम की वजह से देखते हैं तो दूसरे टीम के हारने या जीतने पर दांव लगाते हैं। सट्टा तो क्लब स्तर की प्रतियोगिताओं पर भी लगता है पर इतना नहीं इसलिये देश का नाम उपयोग करना पेशेवर मनोरंजनकर्ताओं को लाभप्रद लगता है।

इसके अलावा लोगों के अंदर व्यसनों का भाव पैदा करने वाले अन्य अनेक व्यवसायक भी हैं जिनमें लाटरी भी शामिल है। कहने का तात्पर्य यह है कि  लोगों को भ्रमित कर उनको भ्रष्ट करने वालों को कड़ी सजा देना चाहिये।  यह राज्य का कर्तव्य है कि वह हर ऐसे काम को रोके जिससे लोगों में अज्ञान, हिंसा तथा व्यवसन का भाव पैदा करने का काम किया जाता है।

वैसे द्यूत और सट्टे को पाप कहना भी गलत लगता है बल्कि यह तो मनुष्य के लिये एक तरह से दिमागी विष की तरह है।  द्यूत खेलने वालों का सजा क्या देना? वह तो अपने दुश्मन स्वयं ही होते हैं।  समाचार पत्र पत्रिकाओं में ऐसे नित किस्से आते हैं जिसमें जुआ और सट्टे में हारे जुआरी कहीं स्वयं तो कहीं पूरे परिवार को ही मार डालते हैं। राज्य को जुआ खिलाने वालों के विरुद्ध कार्यवाही करना चाहिये पर आम लोग इस बात को समझ लें कि जुआ खेलना तो दूर जुआरी की छाया से स्वयं तथा परिवार के सदस्यों को दूर रखें।
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://anantraj.blogspot.com
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