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फेर पड़ा नहिं अंग में, नहिं इन्द्रियन के मांहि।
फेर पड़ा कछु बूझ में, सो निरुवरि नांहि।।संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि सभी मनुष्यों के अंग एक तरह के हैं और सभी की इंद्रियों का काम भी एक जैसा है बस समझ का फेर है। इसलिये अपनी बुद्धि को शुद्ध रखने का प्रयास करना चाहिए।
या मोती कछु और है, वा मोती कछु और।
या मोती है शब्द का, व्यापि रहा सब ठौर।।संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि यह मोती कुछ और है और वह मोती कुछ और। शब्द ज्ञान वाला मोती सभी जगह व्याप्त है पर पर एक एक मोती वह है जो केवल सागर में ही प्राप्त होता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-सभी मनुष्य एक समान है क्योंकि सभी के अंग एक जैसे हैं-भले ही रहने की धरती और खान पान की विविधता के कारण उनका रंग अलग होता है। सभी मनुष्यों की जरूरतें भी एक जैसी होती हैं क्योंकि उनकी इंद्रियों के विषय सुख भी एक जैसे हैं। इसके बावजूद मनुष्य के आचार विचार और चाल चलन में अंतर पाया जाता है। यह अंतर बुद्धि के कारण होता है। जिनकी बुद्धि शुद्ध होती है वह हमेशा सकारात्मक रूप से जीवन व्यतीत करते हैं और जिनकी अशुद्ध होती है वह नकारात्मक रूप से काम करते हुए दूसरों को कष्ट देते हैं। बुद्धि की शुद्धता के लिये समय मिलने पर अध्यात्मिक साधना करना चाहिये। सत्संग, भक्ति और साधना के अलावा अन्य कोई मार्ग बुद्धि शुद्ध करने का नहीं है।
एक मोती तो वह है जो समुद्र से प्राप्त होते हैं। वह निर्जीव मोती केवल दिखने में ही आकर्षित होते हैं। एक शब्द भी मोती की तरह होते हैं जो सभी ओर व्याप्त हैं। यह शब्द ज्ञान मोती अध्यात्मिक ज्ञान के समुद्र में गोता लगाकर ही प्राप्त किये जा सकते हैं। इनका प्रभाव दीर्घकाल तक रहता है। यह शब्द ज्ञान मोती जिसने चुन लिये वही श्रेष्ठ इंसान कहलाता है। समुद्र से प्राप्त मोतियों की माला धारण करने से आदमी की बाह्य शोभा बढ़ती है पर शब्द ज्ञान मोती से उसमें अंदर भी चमक भी आ जाती है।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप
2 comments:
सुंदर विश्लेषण !!
संतों की बात तो सही होती ही है. मनन-क्षमता से ही मनुष्य बनता है.
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