Tuesday, July 7, 2009

मनु स्मृति-पवित्र स्थान पर ही गुरू और शिष्य विद्याध्यन करें (manu smruti)

पशुमण्डुकमर्जारश्वसर्पनकुलाखुभिः।
अंतरागमने विद्यादनाध्यायमहर्निशमम्।।
हिंदी में भावार्थ-
चूहा, बिल्ली,श्वान,गाय,मेढक,नेवला और सांप अगर गुरु और शिष्य के बीच उस समय निकल जायें जब विद्याध्ययन चल रहा हो तो उसे उस दिन बंद कर देना चाहिये।
द्वावेव वर्णयेन्नित्यमनध्यायो प्रयत्नतः।
स्वाध्यायभूमिंचाशुद्धामात्मानं चाशुचिंतद्विजः।।
हिंदी में भावार्थ-
जो स्थान पवित्र और शुद्ध नहीं है वहां अध्ययन नहीं करना चाहिये। उसी तरह स्वयं शुद्ध हुए बिना भी व्यक्ति को अध्ययन नहंी करना चाहिये। शुद्ध और पवित्र स्थान पर स्वयं शुद्ध भाव से संपन्न व्यक्ति ही विद्या सही तरह से प्राप्त कर सकता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-हमारे देश में विद्यालयों की जो दशा है उसे सभी जानते है। देश में बहुत कम विद्यालय ऐसे होंगे जो अपने यहां साफ सफाई का का ध्यान रखते होंगे। सरकारी क्षेत्र के हों या निजी क्षेत्र के विद्यालय उनके साफ सफाई का ख्याल बहुत ही कम रखा जाता है। आज की वर्तमान पीढ़ी पर उसकी शिक्षा को लेकर तमाम तरह के कटाक्ष किये जाते हैं पर इस बात पर कितने लोग ध्यान दे रहे हैं कि उनको शिक्षा दिये जाने वाले स्थान कितने साफ सुथरे हैं। गांवों मेें चले जाईये तो विद्यालयों के नाम बड़े आकर्षक होते हैं पर उनके जर्जर भवनों की हालत और वहां व्याप्त गंदगी को देखें तो अपनी व्यवस्था को कोसना पड़ता है पर उसकी जिम्मेदारी लेने वाले लोग भी हमारे बीच में से ही होते है। वह नन्हें नन्हें मासूम बालक बालिकायें शिक्षा प्राप्त करते हैं पर पास ही व्याप्त गंदगी का उन पर क्या मानसिक दुष्प्रभाव पड़ता है इस पर कोई विचार नहीं करता।
निजी क्षेत्र के विद्यालय भी कम अव्यवस्था वाले नहीं है। उनके विद्यालयों के नाम भले ही आकर्षक हों पर उनका लक्ष्य केवल पैसा कमाना होता है। यह मानसिक अपवित्रता किस तरह बालक बालिकाओं को शिक्षित कर पायेगी यह भी विचार का विषय है? वह किताबों का अध्ययन कर अक्षरज्ञान तो प्राप्त कर लेते हैं पर नैतिक ज्ञान-जो कि पढ़ाने से अधिक शिक्षकों तथा प्रबंधकों के आचरण से आता है-उनमें नहीं स्थापित हो पाता। यही बालक-बालिकायें जब समाज और राष्ट्र के उच्च पद पर पहुंचते हैं तो फिर उनका लक्ष्य भी केवल धनार्जन करना ही रह जाता है।
अगर देश के विद्यालयों और महाविद्यालयों में ही पवित्रता और साफ सफाई की व्यवस्था रखी जाये तो शायद अपने देश को उस नैतिक संकट से मुक्त किया जा सकता है जिसके लिये विश्व भर में बदनामी हो रही है। देशभक्ति और समाज सेवा के गीत सुनाने से व्यक्ति कर्तव्यनिष्ठ नहीं हो जाता बल्कि बचपन से उसे अपने आचरण और व्यवहार से सिखाना पड़ता है। यह नैतिक दायित्व माता पिता के साथ ही गुरुजन और शिक्षा प्रबंधकों का है जिसे पूरा करना आवश्यक है।
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