Monday, December 8, 2008

संत कबीरदास के दोहेःभक्ति में चतुराई करने से परमात्मा नहीं मिलते

चतुराई हरि ना मिलै, ए बातां की बात
एक निस प्रेमी निराधार का गाहक गोपीनाथ

संत कबीरदास जी का आशय यह है कि चुतराई करने से परमात्मा की प्राप्ति नहीं होती। निष्काम भक्ति से उनको प्राप्त किया जा सकता है। वह निस्वाथी भक्त को ही पंसद करते हैं।
पथ से बूढ़ी प्रथमी, झूठे कुल की लार
अलघ बिसारियो भेष में बूढ़े काली धार

संत कबीरदास जी का कहना है कि पूरी दुनियां पुरानी परंपराओं और कुल की मर्यादा का वहम पालकर डूब जाती है। परमात्मा को भुलाकर आदमी उनके पीछे घूमते हुए एक दिन इस दुनियां से विदा हो जाता है।

वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-लोग अपने गुरुओं के पास जाते हैं तो वह कथित रूप से उनको परमात्मा प्राप्ति का उपाय बताते हैं। उपाय थोड़ा बड़ा या लंबा होता है तो भक्त के आग्रह पर उसे छोटा कर दिया जाता है। उनसे कहा जाता है कि ‘अगर यह नहीं होता तो इतना कर लो’ या एक घंटे नहीं जाप कर सकते तो पांच मिनट ही कर लो‘। यह सब ढोंग है। सच तो यह है कि परमात्मा का प्राप्ति निष्काम भक्ति से ही की जा सकती हैं। अपना काम करते हुए उसका स्मरण हर पल करने से ही ऐसी भक्ति प्राप्ति की जा सकती है। यह नहीं कि सुबह अगरबती जलाकर चले गये और फिर दिन भर उसका स्मरण नहीं किया। इस जीवन में देह की क्षुधा शांत करने के लिये जैसे हर पल काम करना पड़ता है वैसे ही आत्मा की शांति के लिये उसका स्मरण करना चाहिये। परमात्मा की प्राप्ति का कोई शार्टकट नहीं है। उसका नाम हर पल लेते हुए अपना काम करना चाहिये तभी सच्ची भक्ति प्राप्ति हो सकती है।
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