अपना गला कटाय के, भिस्त बसै क्यों नांहि
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि सभी जीवों की पीड़ा एक जैसी होती है पर मूरख लोग इसको नहीं जानते वरना हिंसक प्रवृत्ति के लोग अपना गला कटवाकर स्वयं स्वर्ग क्यों नहीं जाते जबकि दूसरे को इसके लिये प्रेरित करते हैं।
काटा कूटी जो करै, तै पाखंड को भेष
निश्चय राम न जानहीं, कहैं कबीर संदेस
संत शिरोमणि कबीरदास जी के अनुसार जो धर्म के नाम पर बलि देने के लिये पशुओं का वध करते हैं वह केवल पाखंड है। ऐसे लोग भगवान राम का नाम नहीं जानते।
वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-संत शिरोमणि कबीरदास जी ने भारतीय समाज में धर्म के नाम पशु बलि देने वालों को मूर्ख बताया है। एक तरफ हमारे अध्यात्म मे कहा जाता है कि सभी जीवों में परमात्मा का वास ही है और फिर तमाम तरह के देवताओं के नाम पर पशुओं की बलि देने की मूर्खतापूर्ण परंपरा का पालन भी किया जाता है। जिन लोगों के पास धन है वह लोग समाज को दिखाने के लिये ही ऐसे पशुओं की बलि देते हैं ताकि उनको भक्त समझा जाये। कई लोग तो यह भी कहते हैं कि बलि दिया गया पशु मुक्ति पाया गया उसे स्वर्ग मिलेगा। यह बेकार की बात है। ऐसे लोग भगवान के संदेश को नहीं समझते और घोर अज्ञानी हैं। अपने देश में तो कई ऐसे भी धार्मिक स्थान बनाये गये हैं जहां शराब चढ़ाई जाती है। दरअसल इस तरह के धार्मिक कुरीतियों के कारण ही भारतीय समाज बदनाम हुआ है पर फिर भी अनेक अज्ञानी लोग इसे समझते ही नहीं है।
भगवान की भक्ति तो एकांत में होती है और उससे न केवल हमारे मन में शुद्धता आती है बल्कि आसपास का वातावरण भी शुद्ध होता है। इस तरह शोर शराबे कर पशुबलि देना या शराब चढ़ाना विकृत मानसिकता का परिचायक है। मनुष्य हो या पशु उनमें परमात्मा का वास है और इसी कारण सभी की पीड़ा होती है। यह कैसे हो सकता है कि काटे जाने पर आदमी को पीड़ हो पर पशु को नहीं।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप
2 comments:
आभार व्याख्या के लिए.
कबीर के दोहे मुझे बेहद पंसद है.. और आपके ब्लोग पर ये पढ़्कर बहुत प्रेरणा मिलती है..
आभार मेरा भी..
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