2.गुणों में दोष न देखना, हृदय में सहज भाव, आचरण में पवित्रता, संतोष, मधुर वाणी, आत्म निंयत्रण, सत्य बोलना, तथा विचारों में स्थिरता ये कभी भी मूर्ख और दुरात्मा व्यक्ति में नहीं होते।
3.आत्मज्ञान, खिन्नता का अभाव, सहनशीलता, धर्मपरायणता, अपने वचन का निर्वाह तथा दान करने जैसे गुर्ण अधम पुरुष में नहीं होते।
4. विद्वानों के लिये अभद्र शब्द प्रयोग करते हुए उनकी अज्ञानी लोग निंदा करते हैं। विद्वान लोगों से अभद्र और आक्रोशित व्यवहार करने वाला मनुष्य पाप का भागी होता है और क्षमा करने वाला व्यक्ति पाप से मुक्त हो जाता है।
5.दुष्ट लोगों को त्याग न कर उनके साथ होने पर निरपराध होने पर भी सज्जन को दंड भोगना पड़ता है, जैसे सूखी लकड़ी में मिल जाने पर गीली लकड़ी भी जल जाती है। इसलिये दुष्ट लोगों की संगत कभी नहीं करना चाहिए।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप
2 comments:
" this is the peaceful place i found daily to come and read"
Regards
आज भी प्रासंगिक बहुत सुंदर विचार दिए हैं. इसीलिए तो चाणक्य की नीति है. इसीप्रकार के विचार देते रहें.
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