ज्यूं ज्यूं भीजे कामरी, त्यूं त्यूं भारी होय।
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि अधिक हठ करने कोई बात नहीं बनती है जैसे जैसे कंबल पानी में भीगता है और अधिक भारी होता जाता है।
नाम भजो मन बसि करो, यही बात है तंत
काहे को पढि़ मरो, कोटि ज्ञान गिरंथ
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि परमात्मा का नाम जपनते हुए ही मन को बस में किया जा सकता है यही जीवन का मूल मंत्र है। व्यर्थ में ज्ञान की पुस्तकेंं पढ़ने से कोई लाभ नहीं है। ढेर सारे ग्रंथ पढ़ने से कोई ज्ञान थोड़े ही मिल जाता है।
वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-हर मनुष्य में अहंकार होता है पर किसी किसी में यह इतना अधिक हो जाता है कि वह किसी सही बात को भी स्वीकार नहीं करता। लोगों के आत्मप्रवंचना करने की आदत होती है। वह चाहते हैं कि हर कोई उनका सम्मान और प्रशंसा करे। इस मोह के कारण मनुष्य हठी हो जाता है और अपने मूंह से निकली बात यह हाथ से हुई गलती मान लेना उसे अपनी हेठी लगता है। उसे सही साबित करने के लिये वह अनर्गल तर्क देता या बहाने बनाते हुए अपनी गलती का वजन बढ़ाता जाता है। ऐसे हठी लोग समाज में मजाक का पात्र बनते हैं।
इस विश्व में तमाम तरह के धार्मिक ग्रंथ हैं और उनमें तमाम तरह का ज्ञान भरा हुआ है। उसमें कहानियों के साथ अनेक तरह की बातें कही गयी हैं और अगर उनको पढ़ा जाये तो यह समझ में नही आता कि भगवान की भक्ति का सही स्वरूप कौनसा है। ऐसे में लोग तमाम तरह के भ्रम अपने मन में पाल लेते हैं। भारतीय अध्यात्म के अनुसार केवल प्रभु का नाम हृदय में धारण कर उसे स्मरण करना ही पर्याप्त है। इसके लिये कोई समय या दिन निर्धारित नहीं है। चाहे जब आये मन में अपने ईश्वर का ध्यान लगा लो तो पूरे शरीर में स्फूर्ति आ जाती है। उसके लिये जरूरी नहीं है कि कोई किताब पढ़ी जाये। इन किताबों से ज्ञान रटकर तो अनेक लोगों ने अपने नाम के आगे संत की उपाधि लगा ली है पर उनके कर्म तो सांसरिक मनुष्यों की तुलना में निम्न कोटि के हैं क्योंकि वह भगवान का नाम अपनी वाणी से लेते हैं पर उनके हृदय में तो माया का ही वास होता है।
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.शब्दलेख सारथि
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप
2 comments:
आभार. इसे प्रस्तुत करने के लिए.
एक दोहा मैंने पढ़ा था उसका अर्थ बताने की कृपा करे.
"कबीरदास की उलटी बाणी
बरसे कम्बल भींजे पानी."
बहुत आभार इस व्याख्या के लिए.
Post a Comment