2.सावन के अंधे को केवल हरियाली ही दिखती है। इसका तात्पर्य यह है कि आदमी को आंखें तो हैं पर वह सूखे में भी सावन की हरियाली की बात करता है क्योंकि उस पर केवल उसी का प्रभाव होता है
3.कामवासना के अंधे को कुछ भी नहीं सूझता उसकी आखों में केवल मद छाया रहता है। वह केवल इसी विषय पर बात कर अपना तथा दूसरों को मनोरंजन का प्रयास करता है। इसी प्रकार लोभी को भी अपने स्वार्थ की अलावा कुछ नहीं सूझता।
कुछ इस प्रकार के कामांध, मदांध और लोभी ऐसे मनुष्य होते हैं जो आंखें रहते हुए भी अंधों की तरह व्यवहार करते हैं। ऐसे लोग अपने नजरिये से दुनियां को देखते हैं और अपने स्वार्थ के अनुसार उसके स्वरूप का वर्णन करते हैं।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप
1 comment:
सुन्दर विचार! आभार।
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