इक दिन ऐसा होयगा, कोय काहू का नाहिं
घर की नारी को कहै, तन की नारी जाहिं
संत शिरोमणि कबीर दास जी कहते हैं कि आदमी भ्रम में रहता है कि यह देह कभी नष्ट नहीं होगी। वास्तविकता यह है कि एक दिन इस देह का त्याग करना ही पड़ता है। उस समय घर की नारी तो छोडिये अपने शरीर की नाड़ी तक हमारी इस देह का साथ छोड़ देती ही।
एक बूँद के कारनैं, रोता सब संसार
अनेक बून्द खाली गए, तिनका नहीं विचार
संत शिरोमणि कबीर दास जी कहते हैं कि कोई मनुष्य देह त्याग देता है तो परिवार के रो-रोकर उसका शोक करते हैं वह इस बात का विचार नहीं करते कि अनेक लोग इस तरह जा चुके हैं वह भी खाली हाथ।
व्याख्या-यहाँ कबीर दास जीइस शाश्वत सत्य के और इशारा करते हैं कि यहाँ सब नश्वर है और जो आया है वह जायेगा इसलिए किसी की मृत्यु पर शोक करना व्यर्थ है।
1 comment:
ये तो सच्चाई है जीवन की की जो आया है वो जायेगा भी।
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