जहाँ आपा तहं आपदा, जहाँ संसै तहां सोग
कहैं कबीर कैसे मिटै, चारों दीरघ रोग
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं किजहाँ मनुष्य में अहंकार हैं वहाँ विपत्ति जरूर आयेगी। जहाँ अज्ञान के कारण संशय होगा वहाँ निराशा और शोक प्रकट होगा। ऐसे में चार महारोग अहंकार, संकट, संशय और शोक मिट नहीं सकते।
आज के संदर्भ में व्याख्या-वैसे तो मनुष्य में अहंकार की प्रवृति स्वाभाविक रूप से रहती है और यह कबीर जी के समय में भी रही है, पर उस समय फिर भी लोग अपना समय आध्यात्म में बिताते होंगे पर आजकल तो आदमी की दिनचर्या इतनी व्यस्त है कि उसे भक्ति और ज्ञान प्राप्त करने का समय ही कहाँ मिल पाता है। कई माता-पिता अपने बच्चों को भी कुछ सिखाने का समय नहीं निकाल पाते, ऐसे में चारों तरफ अज्ञान फैलता जा रहा है। साधू संत जिन्होंने केवल ज्ञान की किताबें पढी होतीं हैं पर धारण नहीं किया होता और वह अहंकार में मनोरंजन कार्यक्रम की तरह अपने प्रवचन प्रस्तुत करते हैं तो उनको सुनने वाले भी सत्संगी होने का अहंकार पाल लेते हैं।
कई लोग तो इन संतों के पास से ऐसे लौटते हैं मानो स्वर्ग का टिकिट लेकर लौटे हों। आशय यह है कि आजकल लोगों में जो मानसिक तनाव बढ़ रहा है और उससे जो तन और मन में व्याधियां फ़ैल रही हैं उसका कारण अहंकार और अज्ञान है। हर कोई अपनी बात एक ज्ञानी की तरह कर रहा है पर सुन कोई किसी की नहीं रहा है। हर कोई दर्द बयान कर रहा है पर कोई किसी का हमदर्द नहीं बन रहा है। कई जगह यह अंहकार छोटी-छोटी बातों पर पैदा होता है जो बडे संकट का कारण बनता है। हमारे यहाँ संयुक्त परिवार की परंपरा विघटन का कारण भी यही है जिससे लोगों की संघर्ष करने की भावना कम हुई है। इसलिए जो लोग अपना अंहकार छोड़ कर निरंकार भाव से काम करेंगे वही सुखी रह पायेंगे।
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