Sunday, March 3, 2013

विदुर नीति-शीलवान पुरुष ही समाज पर विजय प्राप्त कर सकता है (sheelwan purush hee samaj par vijay prapt kar sakta hai-vidur neeti)

                आमतौर से हमारे समाज में यह भ्रम प्रचारित किया जाता है कि स्त्री को ही चरित्रवान होना चाहिए।  अपने चरित्र और मान की रक्षा करना उसकी ही स्वयं की जिम्मेदारी है।  कुछ लोग तो यह भी कहते है कि नारी का चरित्र और सम्मान  मिट्टी या कांच के बर्तन की तरह होता है, एक बार टूटा तो फिर नहीं बनता जबकि पुरुष का चरित्र और सम्मान पीतल के लोटे की तरह होता है एक बार खराब हुआ तो फिर मांजकर वैसी ही दशा में आ जाता है।  संभवतः यह कहावत राजसी मानसिकता के लोगों की देन है।  सात्विकत लोग इसे नहीं मानते।  ऐसा लगता है कि समाज की सच्चाईयों और मानसिकता को समझने का नजरिया अलग अलग है।  कुछ लोगों ने पुरुष की मनमानी को सहज माना है और औरत को सीमा में रहने की सलाह दी है। मगर कुछ कुछ विद्वान मानते हैं कि अंततः समस्त मनुष्य जाति के लिये ही उत्तम आचरण आवश्यक है। यही उत्तम आचरण ही वास्तविकता में धर्म है।
विदुर नीति में कहा गया है कि
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जिता सभा वस्त्रवता मिष्ठाशा गोमाता जिता।
अध्वा जितो यानवता सर्व शीलवता जितम्।।
   हिन्दी में भावार्थ-अच्छे कपड़े पहनने वाला सभा, गाय पालने वाला मीठे स्वाद की इच्छा और सवारी करने वाला मार्ग को जिस तरह जीतने वाला मार्ग को जीत लेता है उसी तरह शीलवान पुरुष समाज पर विजय पा लेता है।

शीलं प्रधानं पुरुषे तद् यस्येह प्रणश्यति।
न तस्य जीवितेनार्थो न धनेन न बन्धुभिः।।
   हिन्दी में भावार्थ-किसी पुरुष में शील ही प्रधान है। जिसका शील नष्ट हो जाता है इस संसार में उसका जीवन, धन और परिवार से कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता।
        दरअसल जिन राजसी मानसिकता वाले लोगों ने पुरुष को श्रेष्ठ माना है उनको पता नहीं कि हम जिस धर्म की रक्षा की बात करते हैं उसमें पुरुष की शक्ति का सर्वाधिक उपयोग होता है।  वह शक्ति तभी अक्षुण्ण रह सकती है जब आचरण और विचारों में पवित्रता हो। पवित्र आचरण की प्रवृत्ति भी बाल्यकाल में माता पिता के प्रयासों से ही निर्मित हो सकती है।  जो पुरुष शीलवान नहीं है वह अंततः समाज के साथ ही अपने परिवार के लिये संकट का कारण बनता है।  समाज के लोग कलुषित आचरण वाले लोगों से दूरी बनाते है।  डर के मारे में वह सामने कुछ नहीं कहें पर अधर्म और अपवित्र आचरण वाले पुरुष की निंदा सभी करते हैं। अंतः यह भ्रम कभी नहीं पालना चाहिए कि पुरुष का आचरण कोई चर्चा का विषय नहीं है या उसकी प्रतिष्ठा अमरत्तव लिये हुए है।
संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
writer and editor-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep', Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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