Saturday, September 18, 2010

मनुस्मृति-ज्ञान देने वाला छोटा हो तो भी सम्मानीय (gyani sammaniya-manu smruti in hindi)

ब्राह्मस्य जन्मनः कर्त्ता स्वधर्मस्य च शासिता।
बालोऽपि विप्रो वृद्धास्य पिता भवति धर्मतः।।
हिन्दी में भावार्थ-
ज्ञान देकर दूसरा जन्म देने के साथ ही अपने धर्म का संदेश देने वाला विद्वान चाहे बालक ही क्यों न हो वह धर्म के अनुसार वृद्ध तथा पिता की तरह आदरणीय होता है।
न तेन वृद्धो भवित येनास्य पलितं शिरः।
यो वै युवाऽष्यधीमानस्तं देवाः स्थविरं विदुः।।
हिन्दी में भावार्थ-
बाल सफेद होने से कोई बड़ा या आदरणीय नहीं होता। ज्ञान प्राप्त करने के बाद तो युवा भी बुद्धिमान लोगों की दृष्टि से पूज्यनीय होता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-अनेक लोग दावा करते हैं कि उन्होंने अपने बाल धूप में सफेद नहीं किये तो कुछ लोग ऐसे भी हैं जो मानते हैं कि ज्ञान देने का काम काम केवल उच्च वर्ण के विद्वानों का है। कुछ लोगों में यह भी भ्रम है कि वेदों का ज्ञान केवल पंडित जाति के लोगों का ही है। मनृस्मृति के आधार पर इसका प्रचार खूब होता है। जब मनुस्मृति का अध्ययन करते हैं तो उससे पता लगता है कि चारों वर्णों के लोग अपना स्वाभाविक कर्म करते हैं। इसे हम यूं भी कह सकते हैं कि हमारे स्वाभाविक कर्म ही हमारे वर्ण का परिचायक है।
संसार का ज्ञान प्राप्त करना दूसरा ही जन्म माना जाता है यानि जिसने सिद्धि प्राप्त कर ली वही पंडित हो गया। ज्ञान देने वाला किसी भी जाति में जन्मा हो, उसकी आयु छोटी हो या बड़ी वह पंडित ही है। बुद्धिमान लोग इसलिये ही ज्ञान को परख कर सम्मान प्रदान करते हैं। जाति, धर्म, भाषा या क्षेत्रीय आधार पर बने कथित समाजों में जन्म लेने से कोई छोटा या बड़ा नहीं होता बल्कि जिसने तत्व ज्ञान को समझ लिया और भारतीय अध्यात्म के मर्म को ग्रहण कर लिया वही पंडित है। वैसे भी बड़प्पन इस बात में है कि दूसरो पर उपकार किया जाये वरना अपनी शक्ति किस काम की? यही कारण है कि समझदार लोग केवल उन्हीं लोगों को सम्मानीय मानते हैं जो समाज के हित के लिये काम करते हैं।
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संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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