Saturday, August 28, 2010

विदुर नीति-एक भी इंद्रिय का दोष बुद्धि भ्रष्ट कर देता है (vidur niti-indriya dosh aur buddhi)

पंचेन्द्रियश्च मर्त्यश्च क्षिद्रं चेदेकमिन्द्रियम्।
ततोऽस्य स्त्रवति प्रज्ञा दृतेः यात्रादिवोदकम्।।
हिन्दी में भावार्थ-
जब किसी मनुष्य की पांचों इंद्रियों में एक में भी दोष होता है तब उसकी बुद्धि उसके मस्तिष्क से ऐसे ही निकल जाती है जैसे छिद्र में से पानी।
षड् दोषा पुरुषेपोहे हात्व्या भूतिमिच्छता।
निन्द्रा तन्द्रा भयं क्रोधं आलस्यं दीर्घसूत्रता।।
हिन्दी में भावार्थ-
जिन पुरुषों को अपने जीवन में ऐश्वर्य की चाह है उनको नींद, तंद्रा, भय, क्रोध, आलस्य तथा दीर्घसूत्रता-किसी काम में तय समय से अधिक समय लगाना या सोचना-इन छह दुःर्गुणों का त्याग कर देना चाहिए।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-जीवन में सफलता का मंत्र कड़ा परिश्रम तथा लगन है मगर यह वही कर सकता है जिसको अपने लक्ष्य का सही ज्ञान है। किसी भी मनुष्य की सफलता में उसके स्वास्थ्य का योगदान रहता है इसलिये अपने आपको सदैव सक्षम बनाये रखने का प्रयास करना चाहिये। मनुष्य आंख, कान, नाक मुख तथा मन से ही अपनी देह का संचालन करता है इसलिये उनका स्वस्थ होना आवश्यक है। अगर इनमें से किसी एक में भी दोष होता है तो यह निश्चित समझिये कि कोई भी अपने लक्ष्य को नहीं पा सकता। कहा भी जाता है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ दिमाग का निवास होता है। अस्वस्थ मनुष्य का ध्यान अपनी कमजोर इंद्रिय की तरफ ही निरंतर जाता है ऐसे वह कोई भी काम ढंग से नहीं कर पाता।
यह फिटनेस यानि सामर्थ्य सदैव बनाये रखने के लिये योगासन, प्राणायाम तथा ध्यान करना चाहिये। इससे देह, मन और विचारों के विकार निकल जाते हैं और मन प्रसन्न रहता है। हालांकि सुबह घूमना और अन्य व्यायाम करना भी लाभप्रद है पर उनसे केवल शरीर के विकार ही निकल पाते हैं और दूसरा यह भी उनका प्रभाव पूरे दिन स्थाई नहीं रहता जबकि योगसाधना करने से दीर्घकालीन स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है। इसके अलावा बड़ी आयु में व्यायाम करना कठिन लगता है जबकि योग साधना में ऐसी समस्या नहीं आती।
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