‘आदि सच जुगादि सच।
हे भी सच, नामक होसी भी सच।।’
हिन्दी में भावार्थ-उसका नाम सत्य सत्य परमात्मा है, यह अतीत के युगों में भी सत्य था, वर्तमान काल में भी सत्य है और आने वाले अनेक युगों तक यह सत्य बना रहेगा।
‘सच पुराणा होवे नाही।’
हिन्दी में भावार्थ- दुनियां में समय के साथ हर चीज पुरानी पड़ जाती है लेकिन परमात्मा का नाम कभी पुराना नहीं पड़ता।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या -हम इस संसार में जितनी भी वस्तुऐं और व्यक्ति देख रहे हैं समय के साथ सभी पुराने पड़ते हैं। इसलिये उनमें मोह डालना या उनके आकर्षण के वशीभूत होकर उनको पाने के लिये अपना पूरा जीवन नष्ट करने कोई लाभ नहीं है। व्यक्ति समय के हिसाब से भ्रुण, शिशु, बालक, युवा, अधेड़ तथा वृद्धावस्था को प्राप्त होता है। कोई मनुष्य चाहे कितना भी श्रृंगार कर अपने को युवा दिखाये पर दैहिक रूप से उसमें समय के साथ शिथिलता आती है। यही हाल वस्तुओं का है। कोई वस्तु हम अगर किसी दुकान से जिस भाव में खरीदते हैं उसी भाव में उसे घर लाकर नहीं बेच सकते। इतना ही नहीं हम आजकल के आधुनिक विद्युतीय साधनों को बड़े चाव से खरीदते हैं पर जल्द ही उनका नया माडल आ जाता है और लोग उसे पुराने फैशन का कहना प्रारंभ कर देते हैं।
अतः संसार के भौतिक पदार्थों के प्रति आकर्षण और मनुष्यों में मोह एक सीमा तक ही रखना चाहिये। यहां केवल सच केवल परमात्मा का नाम है जिसे चाहे बरसों तक लेते रहे पर उसके पुराने होने का अहसास नहीं होता। भक्ति जितनी करो उतनी थोड़ी लगती है बल्कि दिन ब दिन उसमें नवीनता का अनुभव होता है। दूसरी चीजों या मनुष्यों से स्वार्थ की पूर्ति न होने पर निराशा मन में आती है पर निष्काम भक्ति से कभी हृदय में तनाव नहीं आता बल्कि उससे दुनियां के दुःख दर्द को सहने की शक्ति आती है।
हे भी सच, नामक होसी भी सच।।’
हिन्दी में भावार्थ-उसका नाम सत्य सत्य परमात्मा है, यह अतीत के युगों में भी सत्य था, वर्तमान काल में भी सत्य है और आने वाले अनेक युगों तक यह सत्य बना रहेगा।
‘सच पुराणा होवे नाही।’
हिन्दी में भावार्थ- दुनियां में समय के साथ हर चीज पुरानी पड़ जाती है लेकिन परमात्मा का नाम कभी पुराना नहीं पड़ता।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या -हम इस संसार में जितनी भी वस्तुऐं और व्यक्ति देख रहे हैं समय के साथ सभी पुराने पड़ते हैं। इसलिये उनमें मोह डालना या उनके आकर्षण के वशीभूत होकर उनको पाने के लिये अपना पूरा जीवन नष्ट करने कोई लाभ नहीं है। व्यक्ति समय के हिसाब से भ्रुण, शिशु, बालक, युवा, अधेड़ तथा वृद्धावस्था को प्राप्त होता है। कोई मनुष्य चाहे कितना भी श्रृंगार कर अपने को युवा दिखाये पर दैहिक रूप से उसमें समय के साथ शिथिलता आती है। यही हाल वस्तुओं का है। कोई वस्तु हम अगर किसी दुकान से जिस भाव में खरीदते हैं उसी भाव में उसे घर लाकर नहीं बेच सकते। इतना ही नहीं हम आजकल के आधुनिक विद्युतीय साधनों को बड़े चाव से खरीदते हैं पर जल्द ही उनका नया माडल आ जाता है और लोग उसे पुराने फैशन का कहना प्रारंभ कर देते हैं।
अतः संसार के भौतिक पदार्थों के प्रति आकर्षण और मनुष्यों में मोह एक सीमा तक ही रखना चाहिये। यहां केवल सच केवल परमात्मा का नाम है जिसे चाहे बरसों तक लेते रहे पर उसके पुराने होने का अहसास नहीं होता। भक्ति जितनी करो उतनी थोड़ी लगती है बल्कि दिन ब दिन उसमें नवीनता का अनुभव होता है। दूसरी चीजों या मनुष्यों से स्वार्थ की पूर्ति न होने पर निराशा मन में आती है पर निष्काम भक्ति से कभी हृदय में तनाव नहीं आता बल्कि उससे दुनियां के दुःख दर्द को सहने की शक्ति आती है।
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://anant-shabd.blogspot.com
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3 comments:
guru garanth ke hisab se aik eeshvar hi sab kuch he phir bhi pooja eeshvar ko chhod kar keval gro garanth ki hi hoti he yeh bhi vichitr he
प्राचीन धर्म का सीधा मार्ग
ईश्वर का नाम लेने मात्र से ही कोई व्यक्ति दुखों से मुक्ति नहीं पा सकता जब तक कि वह ईश्वर के निश्चित किये हुए मार्ग पर न चले। पवित्र कुरआन किसी नये ईश्वर,नये धर्म और नये मार्ग की शिक्षा नहीं देता। बल्कि प्राचीन ऋषियों के लुप्त हो गए मार्ग की ही शिक्षा देता है और उसी मार्ग पर चलने हेतु प्रार्थना करना सिखाता है।
‘हमें सीधे मार्ग पर चला, उन लोगों का मार्ग जिन पर तूने कृपा की।’ (पवित्र कुरआन 1:5-6)
ईश्वर की उपासना की सही रीति
मनुष्य दुखों से मुक्ति पा सकता है। लेकिन यह इस पर निर्भर है कि वह ईश्वर को अपना मार्गदर्शक स्वीकार करना कब सीखेगा? वह पवित्र कुरआन की सत्यता को कब मानेगा? और सामाजिक कुरीतियों और धर्मिक पाखण्डों का व्यवहारतः उन्मूलन करने वाले अन्तिम सन्देष्टा हज़रत मुहम्मद (स.) को अपना आदर्श मानकर जीवन गुज़ारना कब सीखेगा?
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