Saturday, February 13, 2010

रहीम के दोहे-उस सुख से क्या लाभ जो बाढ़ के पानी की तरह बह जाये (rahim ke dohe-sukh aur pani)

तासो ही कछु पाइए, कीजै जाकी आस।
रीते सरवर पर गए, कैसे बुझे पियास।
कविवर रहीम कहते हैं कि जिससे कुछ पाने की संभावना हो उससे ही कोई आशा करना चाहिये। खाली तालाब के पास जाकर कोई प्यास नहीं बुझती।
तेहि प्रमाण चलिबो भलो, जो सब दिन ठहराइ।
उमड़ि चलै जल पार तें, जो रहीम बढ़ि जाइ।।
कविवर रहीम का कहना है कि जिससे सब दिन आनंद प्राप्त हो वही सुख प्रमाणिक माना जाना चाहिये।  ऐसे सुख से क्या लाभ जो क्षणिक हो और वह ऐसे ही उतर जाये जैसे बाढ़ का पानी।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-यह जरूरी नहीं है कि जिसे धन, पद और अन्य भौतिक साधन हों वह समय पड़ने पर सहायता करने वाला हो। सबसे बड़ी बात यह है कि इंसान में दूसरे की मदद करने का भाव होना चाहिये। यही भाव मदद चाहने वाले के लिये रस बनकर प्रवाहित होता है।  जिस व्यक्ति के पास ढेर सारा धन हो पर अगर उसमें उदार भाव नहीं है तो उससे कोई आशा करना स्वयं को धोखा देना है।  कहने का अभिप्राय यही है कि अपने आसपास ऐसे लोगों का संग्रह करना चाहिये जिनके हृदय में शुद्धता और स्नेह का भाव हो वरना उनसे दूरी ही भली क्योंकि उनसे संकट में सहायता की आशा करना व्यर्थ है।
आजकल विज्ञापन का युग है और हर तरफ सुख बिक रहा है। कहीं कोई व्यक्ति हृदय का नायक बनाकर प्रस्तुत किया जा रहा है तो कहीं जिंदगी भर का आराम दिलाने वाली वस्तुओं का प्रदर्शन हो रहा है।  यह केवल जेब से पैसा निकालने की नीति है जिस पर वणिक वर्ग चल रहा है।  याद रखिये हर मनुष्य में दोष होता है अतः कोई इतना पवित्र नहीं हो सकता कि उसे फरिश्ता मान लिया जाये। उसी तरह हम अपने सुख के लिये जो चीजें खरीदते हैं वह कभी न कभी खराब हो जाती हैं और तब हम जो काम हाथ से करते हैं वह नहीं हो पाता और हमारे लिये तनाव का कारण बनता है। उल्टे इन कथित सुख प्रदान करने वाले साधनों से हमारी देह काम करने की आदी नहीं रहती और इससे बीमारियां तो पैदा ही होती हैं मानसिक रूप से भी हम पंगु होते चले जाते हैं।  कहने का अभिप्राय यह है कि इस तरह के सुख क्षणिक हैं और फिर समय आने पर वह विदा हो जाते हैं। अतः जितना हो सके स्वावलंबी बने।


संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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