Thursday, December 24, 2009

विदुर नीति-प्रजा को कष्ट दिये बिना राज्य कर वसूले (tax policy and public-hindu dharam sandesh)

यथा मधु समादत्ते रक्षन पुष्पाणि षट्पदः।

तदभ्दर्थान्मननुष्येभ्य आदद्यादिवहिंसया।।

हिन्दी में भावार्थ
-जिस तरह भौंरा फूलों की रक्षा करता हुआ ही उनके रस का स्वाद लेता है वैसे ही राज्य को चाहिये कि वह प्रजाजनों को कष्ट न देते हुए ही उनसे धन वसूले।

पुष्पं पुष्पं विचन्यीत मूलच्छेदं न कारयेत्।

मालाकार इवरामे न यथांगरकारकः।।

हिन्दी में भावार्थ-
जिस प्रकार माली अपने बगीचे से पेड़ की जड़ को काटे बिना एक एक कर फूल तोड़ता है वैसे ही राजा को चाहिये कि उनकी रक्षा करते हुए उनसे कर वसूले। कोयला बनाने वाले की तरह जड़ नहीं काटना चाहिये।

वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-हमारे प्राचीन ग्रंथों में अर्थशास्त्र और राजनीति शास्त्र को लेकर उच्च कोटि की विषय सामग्री है पर हमारे देश में अंग्रेजों की शिक्षा प्रणाली के चलते उनका अध्ययन नहीं किया जाता है।  अग्रेजों की नीति रही है कि फूट डालो और राज्य करो। दूसरा यह कि जिस सीढ़ी के सहारे सत्ता के शिखर पर चढ़ो उसे गिरा डालो। भले ही अंग्रेजों ने पूरे विश्व पर अपनी ताकत पर राज्य किया पर पर वह सिमट भी गया।  इसके विपरीत भारत भले ही टुकड़ों में बंटा था पर यहां फिर भी धाार्मिक तथा वैचारिक एकता रही। करों को लेकर हमारे देश की व्यवस्था की अक्सर आलोचना होती है।   चूंकि अंग्रेजों ने यहां अपनी व्यवस्था थोपी और फिर उनकी शिक्षा पद्धति से पढ़े लोग ही यहां के नीति निर्धारक बनते हैं तो इसलिये वह अब भी चल रही है।

सच बात तो यह है कि हमारे देश में कर एक अधिकार की तरह वसूल किये जाते हैं। जिसका परिणाम यह है कि प्रशासकीय व्यवस्था में लगे लोग कर तो वसूल करते हैं पर जनकल्याण पर ध्यान नहीं देते।  जलकल्याण करना उनके लिये अपनी इच्छा पर निर्भर हो गया है।  इससे देश में जो अव्यवस्था फैली है उस पर अधिक चर्चा करने बैठें तो पूरा ग्रंथ लिखना पड़ेगा। बड़े स्तर पर तो छोड़िये छोटे स्तर पर राजकीय कर्मचारी अपने अधिकारों को लेकर अकड़ते हैं। प्रजा की सेवा करने में अपनी हेठी समझते हैं।  इसका कारण यही है कि राज्य को सेवा नहीं बल्कि अधिकार का विषय बना दिया गया है।  सच बात तो यह है कि जब तक हमार देश अपने प्राचीन धर्मग्रंथों में वर्णित राजनीति और आर्थिक नीतियों पर नहीं चलेगा यहां की व्यवस्था सुधार होने की संभावना नहीं लगती।


 

संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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