अनुपायवुक्तानि मा स्म तेष मनः कृथाः।।
हिंदी में भावार्थ-मिथ्या उपाय से कपट पूर्ण कार्य सिद्ध हो जाते हैं पर उनमें मन लगाना ठीक नहीं है।
तथैव योगविहितं यत्तु कर्म नि सिध्यति।
उपाययुक्तं मेधावी न तव्र गलपयेन्मनः।।
हिंदी में भावार्थ-अच्छे और सात्विक प्रयास करने पर कोई सत्कर्म सिद्ध नहीं भी होता है तो भी बुद्धिमान पुरुष को अपने अंदर ग्लानि नहीं अनुभव करना चाहिए।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-अक्सर आपने सुना होगा कि प्यार और जंग में सब जायज है-यह पश्चिम से आयातित विचार है। जीवन की तो यह वास्तविकता है कि जैसा कर्म करोगे वैसा परिणाम सामने आयेगा। जैसा मन में संकल्प होगा वैसे ही यह संसार हमारे साथ व्यवहार करेगा। अपने स्वार्थ को सिद्ध करने में मनुष्य इतना तल्लीन हो जाता है कि उसे अपने कर्म की शुद्धता और अशुद्धता का बोध नहीं रहता। इसी कारण वह ऐसे उपायों का भी सहारा लेता है जो अपवित्र और अनैतिक हैं। फिर उसको अपनी बात के प्रमाण रखने के लिये अनेक प्रकार के झूठ भी बोलने पड़ते हैं। इस तरह वह हमेशा पाप की दुनियां में घूमता है। मगर मन तो मन है वह उसकी तृप्ति के लिये भक्ति और साधना का ढोंग भी करता है। इससे प्रकार वह एक ऐसे मायाजाल में फंसा रहता है जिससे जीवन भर उसकी मुक्ति नहीं होती।
इसलिये अपने जीवन में अच्छे संकल्प धारण करने के साथ ही अपने कार्य की सिद्ध के लिये पवित्र और नैतिक उपायों की ही सहायता लेना चाहिए।
बाकी लोग किस रास्ते पर जा रहे हैं यह विचार करने की बजाय यह देखना चाहिए कि हमारे लिये उचित मार्ग कौनसा है। इसके अलावा यह भी एक अन्य बात यह भी है कि अगर हमारा कोई पवित्र और सात्विक कर्म अपने उचित उपाय से सिद्ध नहीं होता तो भी परवाह नहीं करना चाहिए। याद रखें कार्य सिद्ध होने का भी अपना एक समय होता है और जब आता है तो हमें यह भी पता नहीं लगता कि वह काम कैसे पूरा हुआ।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप
1 comment:
भौतिक वस्तुओं की लालसा और येन केन प्रकारेन उन्हें प्राप्त करने की भूख इंसान पर इस कद्र हावी हो गयी है कि उन्हें प्राप्त करने के रास्तों के औचित्य या अनौचित्य से उसे कोई मतलब नहीं है. उसका कोई काम सिद्द हो जाता है तो उसकी नज़र में भगवान है. वरना भगवान नहीं है. सुख और दुख के पीछे की साइंस से वो बेख़बर है. दुख क्यों आया उसका विश्लेषण करने का उसके पास सब्र और समझदारी नहीं है. जिन्हें ईश्वर पर एकनिष्ट विश्वास होता है, वो सुख को भी और दुख को भी उसी का दिया मानते हैं. इसलिए सुख में वो इतराते नहीं हैं और दुख में घबराते नहीं हैं. हमारे लिए जो चीज़ अच्छी है हमें भगवान वही देते हैं.
आपके ब्लॉग का स्वरूप और सामग्री बहुत अच्छी है और उसमें उठाए गये विषय प्रासंगिक होते हैं, धन्यवाद !!
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