Thursday, November 20, 2008

भृतहरि शतकः तेजस्वी व्यक्ति के लिये आयु बाधक नहीं

सिंह शिशुरपि निपतति मदमलिनकपोलभित्तिशु गजेषु
प्रकृतिरियं सत्तवतां न खलु वयस्तेजसो हेतुः


हिंदी में भावार्थ- सिंह का शावक भी मदमस्त हाथी पर हमला करता है। यह सत्य कहा गया है कि शक्तिशाली जीव का यही स्वभाव होता है। तेजस्विता के भाव का आयु से कोई संबंध नहीं होता।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-भारत में एक आयु के बाद सामान्य व्यक्ति को अधेड़ और वृद्ध मान लिया जाता है-धनियों और प्रतिष्ठत लोगों पर यह नियम लागू करने में लोग स्वयं ही संकोच करते हैं। इसके विपरीत हम जिस पश्चिम संस्कृति की आलोचना करते हैं वहां व्यक्ति के साथ ऐसा व्यवहार नहीं होता। यही कारण है कि वहां लोगों की औसत आयु भारत से बड़ी होती है। होता यह है कि जो लोग गरीब और सामान्य वर्ग के हैं, बड़ी आयु होने पर उनके प्रति समाज और परिवार का दृष्टिकोण हेय हो जाता है और उनके अंदर भी यह कुंठा घर कर जाती है कि हमारी तो आयु हो गयी है और अब यह जीवन ढोना है और इसका परिणाम यह होता है कि वह समयपूर्व ही जीवन में थकावट अनुभव करते हैं।

अनेक ऐसे भी लोग है जो पचास और साठ की आयु के बाद बीमारी का शिकार हो जाते है और अगर उन्हें योग साधना या ध्यान करने को कहा जाये तो वह अपनी आयु का हवाला देकर इंकार कर देते हैं। कुल मिलाकर वह नकारात्मक भाव का ऐसा शिकार हो जाते हैं जिससे उनकी मुक्ति नहीं हो पाती। पश्चिमी देशों में बड़ी आयु में भी लोग सुबह की सैर और व्यायाम नियमित रूप से करते हैं इसलिये उनका स्वास्थ्य ठीक रहता है जबकि भारत में बुजुर्ग लोग स्थाई बीमारी से शिकार हो जाते है और मान लिया जाता है कि बुढ़ापा तो होता ऐसा ही है।

सभी जानते हैं कि जितनी बीमारियां दिमागी तनाव से पैदा होती है उतनी अन्य किसी से नहीं। ऐसे में अपने अंदर बड़ी आयु का भाव यह सोचकर नहीं पालना चाहिये कि हमारी बीमारियां तो दूर नहीं हो सकतीं। इतना ही नहीं सभी बड़ी के आयु के लोगों को अपनी आयु का विचार किये बिना जीवन में कार्य करते रहना चाहिये। तेजस्वी व्यक्ति पर आयु का प्रभाव नहीं होता और न कभी वह परेशान दिखते हैं। जहां आदमी ने यह सोचा कि अब तो मैं आराम करूंगा वहीं उसका शरीर ढीला और कमजोर पड़ने लगता है और उसके चेहरे की फीकी कांति देखकर लोग उसकी उपेक्षा कर देते हैं। इससे बेहतर यही है कि नियमित रूप से व्यायाम आदि करते रहें ताकि बुढ़ापे में अपने चेहरे का तेज कम न पड़े।
------------------------------

यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। मेरे अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्दलेख-पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.अनंत शब्द योग
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप

1 comment:

Smart Indian said...

बहुत प्रेरणादायक श्लोक चुना है आपने, धन्यवाद!

समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढ़ें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका


इस लेखक की लोकप्रिय पत्रिकायें

आप इस ब्लॉग की कापी नहीं कर सकते

Text selection Lock by Hindi Blog Tips

हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

विशिष्ट पत्रिकायें

Blog Archive

stat counter

Labels