मदक्षीणो नागः शरदि सरितः श्यानपुलिनाः
हिंदी में भावार्थः शान (खराद) द्वारा तराशा गया मणि, हथियारों से घायल होने पर युद्धविजेता, मदक्षीण हाथी,शरद ऋतु में किनारे सूखे होने पर नदियां, कलाशेष चंद्रमा, और पवित्र कार्यों में धन खर्च कर निर्धन हुआ मनुष्य की शोभा नहीं जाती।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-लोग अपने चेहरे पर निखार लाने के लिये श्रृंगार का सामान उपयोग लाते हैं। पहले तो स्त्रियों ही अपनी सजावट के लिये श्रृंगार का उपयोग करती थीं पर अब तो पुरुष भी उनकी राह चलने लगे हैं। अपने शरीर पर कोई पसीना नहीं देखना चाहता। लोग दिखावे की तरफ अधिक आकर्षित हो रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि शारीरिक श्रम को लोग पहले से अधिक हेय समझने लगे हैंं। स्मार्ट दिखने के लिये सभी जगह होड़ लगी है। सच तो यह है कि दैहिक आकर्षण थोड़ी देर के लिये प्रभाव डालता है पर अपने हाथों से निरंतर पवित्र कार्य किये जायें तो चेहरे और व्यक्तित्व में स्वयं ही निखार आ जाता है। जो लोग सहजता पूर्वक योग साधना, ध्यान, सत्संग और दान के कार्य मेें लिप्त होते हैं उनका व्यक्ति इतना प्रभावी हो जाता है कि अपरिचित भी उनको देखकर आकर्षित होता है।
कितना भी आकर्षक क्यों न हो धनी होते हुए भी अगर वह परोपकार और दान से परे हैं तो उसका प्रभाव नहीं रहता। खालीपीली के आकर्षण में कोई बंधा नहीं रहता। धनी होते हुए भी कई लोगोंं को दिल से सम्मान नहीं मिलता और निर्धन होते हुए भी अपने पूर्व के दान और पुण्र्य कार्यों से अनेक दानवीरों को सम्मान मिलता है। सच तो यह है कि अपने सत्कर्मों से चेहरे में स्वतः ही निखार आता है और स्वार्थी और ढोंगी लोग चाहे कितना भी श्रृंगार कर लें उनके चेहरे पर चमक नहीं आ सकती।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप
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