Saturday, September 27, 2008

संत कबीर संदेशः सिंह समूह में नहीं चलते, हंस कभी कतार नहीं बनाते

चतुराई हरि ना मिलै, ए बातां की बात
एक निस प्रेही निराधार का गाहक गोपीनात

कबीरदास जी का कथन है कि चतुराई से परमात्मा को प्राप्त करने की बात तो व्यर्थ है। जो भक्त उनको निस्पृह और निराधार भाव से स्मरण करता है उसी को गोपीनाथ के दर्शन होते हैं।

सिहों के लेहैंड नहीं, हंसों की नहीं पांत
लालों की नहीं बोरियां, साथ चलै न जमात


संत शिरोमणि कबीर दास जी के कथन के अनुसार सिंहों के झुंड बनाकर नहीं चलते और हंस कभी कतार में नहीं खड़े होते। हीरों को कोई कभी बोरी में नहीं भरता। उसी तरह जो सच्चे भक्त हैं वह कभी को समूह लेकर अपने साथ नहीं चलते।

वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-लोगों ने तीर्थ स्थानों को एक तरह से पर्यटन मान लिया है। प्रसिद्ध स्थानों पर लोग छुट्टियां बिताने जाते हैं और कहते हैं कि दर्शन करने जा रहे हैं। परिणाम यह है कि वहां पंक्तियां लग जाती हैंं। कई स्थानों ंपर तो पहले दर्शन कराने के लिये बाकायदा शुल्क तय है। दर्शन के नाम पर लोग समूह बनाकर घर से ऐसे निकलते हैं जैसे कहीं पार्टी में जा रहे हों। धर्म के नाम पर यह पाखंड हास्याप्रद है। जिनके हृदय में वास्तव में भक्ति का भाव है वह कभी इस तरह के दिखावे में नहीं पड़ते।
वह न तो इस समूहों में जाते हैं और न कतारों के खड़े होना उनको पसंद होता है। जहां तहां वह भगवान के दर्शन कर लेते हैं क्योंकि उनके मन में तो उसके प्रति निष्काम भक्ति का भाव होता है।

सच तो यह है कि मन में भक्ति भाव किसी को दिखाने का विषय नहीं हैं। हालत यह है कि प्रसिद्ध तीर्थ स्थानों पर किसी सच्चे भक्त का मन जाने की इच्छा भी करे तो उसे इन समूहों में जाना या पंक्ति में खड़े होना पसंद नहीं होता। अनेक स्थानों पर पंक्ति के नाम पर पूर्व दर्शन कराने का जो प्रावधान हुआ है वह एक तरह से पाखंड है और जहां माया के सहारे भक्ति होती हो वहां तो जाना ही अपने आपको धोखा देना है। इस तरह के ढोंग ने ही धर्म को बदनाम किया है और लोग उसे स्वयं ही प्रश्रय दे रहे हैं। सच तो यह है कि निरंकार की निष्काम उपासना ही भक्ति का सच्चा स्वरूप है और उसी से ही परमात्मा के अस्तित्व का आभास किया जा सकता है। पैसा खर्च कर चतुराई से दर्शन करने वालों को कोई लाभ नहीं होता।
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2 comments:

seema gupta said...

सच तो यह है कि निरंकार की निष्काम उपासना ही भक्ति का सच्चा स्वरूप है और उसी से ही परमात्मा के अस्तित्व का आभास किया जा सकता है। पैसा खर्च कर चतुराई से दर्शन करने वालों को कोई लाभ नहीं होता।
" bhut accha or saccha sendesh"

Regards

Unknown said...

aapne bahut hi aacha likha hai.
meine aapke or bhi lekh pade hain. bo bhi mujhe bahut aache lage. iske liye aapko bahut bahut dyanyabad

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