Thursday, September 11, 2008

रहीम के दोहे:परमार्थ करने वाले भेद नहीं करते

रहिमन पर उपकार के, करत न यारी बीच
मांस दियो शिवि भूप ने, दीन्हो हाड़ दधीच

कविवर रहीम कहते हैं कि जिस मनुष्य का परोपकार करना है वह जरा भी नहीं हिचकता। वह परोपकार करते हुए यारी दोस्ती का विचार नहीं करते। राजा शिवि ने ने प्रसन्न मुद्रा में अपने शरीर का मांस काट कर दिया तो महर्षि दधीचि ने अपने शरीर की हड्डियां दान में दीं।

वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-विश्व का हर बड़ा आदमी परोपकार करने का दावा करता है पर फिर भी किसी का कार्य सिद्ध नहीं होता। अभिनेता, कलाकार, संत, साहुकार तथा अन्य प्रसिद्ध लोग अनेक तरह के परोपकार के दावों के विज्ञापन करते हैं पर उनका अर्थ केवल आत्मप्रचार करना होता है। आजकल गरीबों, अपंगों,बच्चों,बीमारों और वृद्धों की सेवा करने का नारा सभी जगह सुनाई देता है और इसके लिये चंदा एकत्रित करने वाली ढेर सारी संस्थायें बन गयी हैं पर उनके पदाधिकारी अपने कर्मों के कारण संदेह के घेरे में रहते हैं। टीवी चैनल वाले अनेक कार्यक्रम कथित कल्याण के लिये करते हैं और अखबार भी तमाम तरह के विज्ञापन छापते हैं पर जमीन की सच्चाई यह है कि जो परोपकार भी एक तरह से व्यापार हो गया है और इसके माध्यम से प्रचार और आय अर्जित करने की योजनाओं को पूरा किण जाता है।

जिन लोगों को परोपकार करना है वह किसी की परवाह नहीं करते। न तो वह प्रचार करते हैं और न ही इसमें अपने पराये का भेद करते हैं। उनके लिये परोपकार करना एक नशे की तरह होता है। सच तो यह है कि यह मानव जाति अगर आज भी चैन की सांस ले रही है तो वह ऐसे लोगों की वजह से ले रही हैं. ऐसे लोग न केवल बेसहारा की मदद करते हैं बल्कि पर्यावरण और शिक्षा के लिये भी निरंतर प्रयत्नशील होते हैं। वरना तो जिनके पास पद, पैसे और प्रतिष्ठा की शक्ति है वह इस धरती पर मौजूद समस्त साधनों का दोहन करते हैं पर परोपकारी लोग निष्काम भाव से उन्हीं संसाधनों में श्रीवृद्धि करते है। जिनको परोपकार करने का संकल्प लेना है उन्हें यह तय कर लेना चाहिए कि वह प्रचार और पाखंड से दूर रहेंगे।
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4 comments:

seema gupta said...

जिनका परोपकार करने का संकल्प लेना है उन्हें यह तय कर लेना चाहिए कि वह प्रचार और पाखंड से दूर रहेंगे।
"these words are moral of the artical, really peaceful"

Regards

mamta said...

दीपक जी क्षमा चाहते है पर अगर हम ग़लत नही है तो हमे ऐसा लग रहा है कि जिस मनुष्य का परोपकार करना है कि जगह जिस मनुष्य को परोपकार करना है होना चाहिए ।

शोभा said...

रहीम आदि संत हर युग में प्रासंगिक हैं. बहुत सुंदर और उपयोगी विचार दिया है आपने. सस्नेह.

डॉ .अनुराग said...

शोर मचाकर परोपकार करना यदि ग़लत है.....तो परोपकार करने का अभिमान जताना निरा ग़लत है.....अच्छा आलेख....

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